※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -४–


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, नवमी, शनिवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -४–

 

गत ब्लॉग से आगे…..कवि की उक्ति है-

पारस में अरु सन्त में, बहुत अंतरा जान
वह लोहा सोना करे, यह कर आपु समान ।।

पारस और सन्त में बहुत भेद है, पारस लोहे को सोना बना सकता है; परन्तु पारस नही बना सकता लेकिन सन्त-महात्मा पुरुष तो सँग करने वाले को अपने समान ही सन्त-महात्मा बना देते है इसलिये महात्माओं के सँग के समान इस संसार में और कोई भी लाभ नही है परम दुर्लभ परमात्मा की प्राप्ति महात्मा के सँग से अनायास ही हो जाती है उच्चकोटि के अधिकारी महात्मा पुरुषों के तो दर्शन, भाषण, स्पर्श और वार्तालाप से भी पापों का नाश होकर मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति का पात्र बन जाता है
 
साधारण लाभ तो सँग करनेवाले मात्र को समान भाव से होता ही है, चाहे उसे महात्मा का ज्ञान हो या न हो महात्मा का महत्व जान लेने पर उनमे श्रद्धा होकर विशेष ज्ञान हो सकता है जैसे किसी कमरे में ढकी हुई अग्नि पड़ी है और उसका किसी को ज्ञान नही है, तब भी अग्नि से कमरे में गर्मी आ गयी है और शीत निवारण हो रहा है-यह सहज लाभ तो, वहाँ जो लोग है उनको, बिना जाने भी मिल रहा है पर जब अग्नि का ज्ञान हो जाता है, तब तो मनुष्य उस अग्नि से भोजन बनाकर खा सकते है और दीपक जलाकर उसके प्रकाश से लाभ उठा सकता है .... शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!