।।
श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल, अष्टमी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
सत्संग और महात्माओं का
प्रभाव -३ –
गत ब्लॉग से आगे…..दुसरे नम्बर का सत्संग है-भगवान के
प्रेमी भक्तो का या सत-रूप परमात्मा को प्राप्त जीवनमुक्त पुरुष का सँग । तीसरे नम्बर का सत्संग है-उन उच्चकोटि के साधकों का सँग,
जो परमात्मा की प्राप्ति के लिए साधन कर रहे है । चौथे नम्बर का सत्संग उन सत-शास्त्रों के स्वाध्याय
को कहते है, जिनमे भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और सदाचार का वर्णन है । ऐसे सत-शास्त्रों का सदा प्रेमपूर्वक पठन, मनन और
अनुशीलन करने से भी सत्संग का ही लाभ प्राप्त होता है ।
इनमे सर्वश्रेष्ठ प्रथम नम्बर का सत्संग है तो भगवान्
की कृपा से ही मिलता है । उसी के लिए सारी साधनाएँ की जाती है । परन्तु संसार में महापुरुषों का-महात्माओं का सँग
प्राप्त होना भी कोई साधारण बात नही है । यह भी बड़े ही सोभाग्य से मिलता है ।
पुण्यपुंज बिनु मिलही न संता । सत्संगति संसृति कर अंता ।।
पुन्यपुंज यानी पूर्व के महान शुभ-संस्कारों के
संग्रह से ही महापुरुषों का सँग मिलता है । ऐसे सत्संग का फल संसार के आवागमन से यानी जन्म-मरण
से सर्वथा छुट जाना है । महात्मा
के सँग से जैसा लाभ होता है, वैसा लाभ संसार के किसी के भी सँग से नही हो सकता । संसार में लोग पारस की प्राप्ति को बड़ा लाभ मानते है,
परन्तु सत्संग का लाभ तो बहुत ही विलक्षण है ।.... शेष अगले ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!