※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -३-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , पञ्चमी, गुरूवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -३-

 
गत ब्लॉग से आगे….. यदि किसी से यह कहाँ जाये की ‘धन और जीवन तो जितना भाग्य में लिखा है, उतना ही मिलेगा, जरा भी ज्यादा कम नही हो सकता; अत: ईश्वर और अपने भाग्य पर विश्वास रखकर झूठ, कपट, चोरी और बेईमानी करने से धन और जीवन अधिक मिलता है तो भी वह किस काम का? क्योकि सच्चाई से उपार्जित थोडा भी धन अमृत के समान है उससे खाने के लिए रुखा-सूखा भी मिले तो भी वह अमृत है और अन्याय से उपार्जित धन से प्राप्त मेवा-मिस्ठान भी विष के समान है  न्याय से प्राप्त साधारण झोपडी भी अच्छी और अन्याय से प्राप्त महल भी किस काम का ? वह भी विष के तुल्य ही है न्यायपूर्वक थोडा भी जीवन उत्तम है और अन्यायपूर्वक बहुत लम्बा जीवन भी किस काम का ?’ तो यह सुनकर वे निरुतर तो हो जाते है किन्तु करते है वहीं जो सदा करते आये है   यह नही समझते की मनुष्य-जीवन बहुत ही थोडा है और वह बड़े ही भाग्य से ईश्वर की दया से मिला है

अत: जिससे अपना शीघ्र उद्धार हो, उसी कार्य में अपना जीवन बिताना चाहिये इस बात को न सोचना-समझना बहुत ही दुःख, लज्जा और आश्चर्य की बात है

विशिष्ट पदों के लोभ में आकर बड़े-बड़े लखपति-करोडपति व्यक्ति भी मोह के कारण अपने कर्तव्य से भ्रष्ट हो जाते है किन्ही को सरकारी उच्च पद प्राप्त हो जाता है तो वे उस पद के लोभ और अभिमान में आकर मोह के कारण अपने धर्म, कर्म, न्याय, अन्याय, भूख, प्यास, सुख, दुःख की कुछ भी परवाह न करके उसी के पीछे अपने वास्तविक मानव-कर्तव्य को भूल जाते है ....शेष  अगले ब्लॉग में.    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!