※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , षष्ठी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -४-

 
गत ब्लॉग से आगे…..  बहुत से मनुष्य मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा पाने पर यह नही समझते  की मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा नाशवान और क्षणिक है, यह आरम्भ में तो अमृत के समान प्रतीत होती है पर इसका परिणाम विष के समान है इसी से वे मोह के कारण अपने वास्तविक कर्तव्य को भूल जाते है इस कारण उनमे दीखाऊपन आ जाता है, जिससे दम्भ-पाखण्ड बढ़ जाते है और वे न करनेयोग्य दुर्गुण, दुराचार, दुर्व्यसन करने लगते है और करने योग्य सद्गुण, सदाचार, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य से वन्चित रह जाते है इसके फलस्वरुप उनकी इहलोक और परलोक में दुर्गति होती है

 बहुत से मनुष्य नाटक, सिनेमा, क्लब, चौपड़, ताश, शतरंज, खेल-तमाशे आदि प्रमाद में समय को व्यर्थ बिताकर अपने समय को बर्बाद करते है वे यह नही समझते की लाखों रूपये खर्च करने पर भी मनुष्य-जीवन का एक क्षण का समय भी नही मिल सकता मनुष्य-जीवन का समय अमूल्य है, उसको निस्वार्थ:भाव से भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, परोपकार(लोकहित) में लगाने पर परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है ....शेष  अगले ब्लॉग में.
   

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!