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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण , षष्ठी, शुक्रवार,
वि० स० २०७०
वर्तमान दोषों के निवारण
की आवश्यकता -४-
गत ब्लॉग से आगे….. बहुत से मनुष्य मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा पाने पर यह
नही समझते की मान-बड़ाई-प्रतिष्ठा नाशवान
और क्षणिक है, यह आरम्भ में तो अमृत के समान प्रतीत होती है पर इसका परिणाम विष के
समान है । इसी से वे मोह के कारण अपने
वास्तविक कर्तव्य को भूल जाते है । इस कारण उनमे दीखाऊपन आ जाता है, जिससे दम्भ-पाखण्ड बढ़ जाते है और वे न करनेयोग्य
दुर्गुण, दुराचार, दुर्व्यसन करने लगते है और करने योग्य सद्गुण, सदाचार, भक्ति,
ज्ञान, वैराग्य से वन्चित रह जाते है । इसके फलस्वरुप उनकी इहलोक और परलोक में दुर्गति होती है ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!