※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -५-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , सप्तमी, शनिवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -५-
 

गत ब्लॉग से आगे…..इस समय दहेज़ की प्रथा भी दिन-पर-दिन उग्र रूप धारण कर रही है यद्यपि इसको रोकने के लिए जनता तथा सरकार की और से प्रयत्न भी जारी है ; किन्तु कोई सफलता नही मिल रही है जहाँ पहले चौदह वर्ष की अवस्था के और रजस्वला होने के पूर्व ही कन्या का विवाह हो जाया करता था, वहां वर्तमान समय में सोलह-सत्रह वर्ष की रजस्वला लडकियाँ भी हजारों की संख्या में अविवाहिता ही है इससे जो बहुत-से वरपक्षवालों को अपनी इच्छा के अनुसार दहेज़ से संतुष्ट नही कर सकते, यह भी एक प्रधान कारण है

कोई-कोई लडकी तो धन के अभाव के कारण माता-पिता के कष्टों को देखकर आत्महत्या कर लेती है और किसी लडकी के माता अथवा पिता धन के आभाव में विवाह नही कर सकने के कारण लडकी को बड़ी देखकर आत्महत्या कर लेती है

विचारकर देखे तो इन हत्याओं का पाप अनुचित दहेज़ लेनेवालों को लगता है प्राय: सभी प्रान्तों और जातियों में यह प्रथा व्यापक है सभी लोगों को इसको दूर करने के लिए लेख, व्याख्यान, पत्र, सभा आदि उपायों द्वारा जोरदार प्रयत्न करना चाहिये जो कोई व्यक्ति अपने कथन को स्वयं आचरण में ला कार दिखाता है, वह जनता का बड़ा भारी उपकार करता है; क्योकि उसके आदर्शों को देखकर दूसरों पर भी असर पड़ता है जो केवल कहता ही है, स्वयं आचरण नही करता, उसका कोई विशेष असर नही होता आजकल कहने-लिखने वाले तो बहुत है, पर स्वयं आचरण करनेवाला कोई विरला ही है ....शेष  अगले ब्लॉग में.

   

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!