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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण , नवमी, रविवार, वि० स० २०७०
वर्तमान दोषों के निवारण
की आवश्यकता -६-
गत ब्लॉग से आगे….. आचार-विचार भी दिन-पर-दिन
नष्ट-भ्रष्ट होता जा रहा है । खान-पान विषयक शौचाचार तो होटलों और बाजारू दुकानों के कारण प्राय: नष्ट हो
गया है । बहुत से होटलों में मछली, माँस,
अंडा, मदिरा आदि घ्रणित पदार्थ भी शामिल रहते है, जो सर्वथा अपवित्र,
शास्त्र-निषिद्ध और हिंसा-पूर्ण होने के कारण स्वास्थ्य और धर्म के लिए महान
हानिकारक है; अत सर्वथा त्याज्य है ।
स्कूल-कॉलेज आदि शिक्षा-संस्थाओं में धर्मिक-शिक्षा न
होने कारण बालकों में चन्चलता और उच्छृखलता भी बहुत बढ़ रही है । प्राचीनकाल में छात्रगण अपने आचार्य ऋषि-मुनियों का
बहुत अधिक आदर-सत्कार, सेवा-पूजा किया करते थे; किन्तु इस समय विद्यार्थीगण अपने
शिक्षकों का उस प्रकार का आदर-सत्कार-सम्मान नही करते; बल्कि कहीं-कहीं तो
विद्यार्थी शिक्षकों का अपमान भी कर बैठते है । यह बहुत ही अनुचित है । विद्यार्थियों को अपने को शिक्षा देनेवाले अध्यापकों
का सदा श्रद्धापूर्वक आदर-सत्कार-सम्मान करना चाहिये ।....शेष अगले
ब्लॉग में.
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!