※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -६-



।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , नवमी, रविवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -६-

 

गत ब्लॉग से आगे….. आचार-विचार भी दिन-पर-दिन नष्ट-भ्रष्ट होता जा रहा है खान-पान विषयक शौचाचार तो होटलों और बाजारू दुकानों के कारण प्राय: नष्ट हो गया है बहुत से होटलों में मछली, माँस, अंडा, मदिरा आदि घ्रणित पदार्थ भी शामिल रहते है, जो सर्वथा अपवित्र, शास्त्र-निषिद्ध और हिंसा-पूर्ण होने के कारण स्वास्थ्य और धर्म के लिए महान हानिकारक है; अत सर्वथा त्याज्य है

 

स्कूल-कॉलेज आदि शिक्षा-संस्थाओं में धर्मिक-शिक्षा न होने कारण बालकों में चन्चलता और उच्छृखलता भी बहुत बढ़ रही है प्राचीनकाल में छात्रगण अपने आचार्य ऋषि-मुनियों का बहुत अधिक आदर-सत्कार, सेवा-पूजा किया करते थे; किन्तु इस समय विद्यार्थीगण अपने शिक्षकों का उस प्रकार का आदर-सत्कार-सम्मान नही करते; बल्कि कहीं-कहीं तो विद्यार्थी शिक्षकों का अपमान भी कर बैठते है यह बहुत ही अनुचित है विद्यार्थियों को अपने को शिक्षा देनेवाले अध्यापकों का सदा श्रद्धापूर्वक आदर-सत्कार-सम्मान करना चाहिये ....शेष  अगले ब्लॉग में.

   

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!