※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -७-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , दशमी, सोमवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -७-

 
गत ब्लॉग से आगे….. आजकल कारखानों, कार्यालयों या दुकानों के मालिकों और मजदूरों या कर्मचारियों का पारस्परिक व्यवहार भी पहले की अपेक्षा बहुत कटु हो गया है अधिकाँश मालिक मजदूरों या कर्मचारियों से काम तो अधिक लेते है और मजदूरी या वेतन कम देते है, इसी प्रकार मजदूर या कर्मचारी भी काम कम करके अधिक पारिश्रमिक लेना चाहते है  
 
 मालिक तो कर्मचारियों जैसा आदर-सत्कार और प्रेम जैसा करना चाहिये, वैसा नही करते तथा कर्मचारी मालिकों का नही करते इसी कारण उतरोत्तर प्रतिद्वंदिता, लडाई-झगड़े बढ़कर देश की बहुत हानि हो रही है पूर्वकाल में कर्मचारी मालिकों को पिता के समान और मालिक कर्मचारी को पुत्र के समान समझते थे, इससे उनमे परस्पर बडा ही प्रेम और सुख-शान्ति रहती थी
 
प्रत्यक्ष में लडाई-झगड़ा और गाली-गलौज तो कभी नही होता था अत: सभी को अपने-अपने कर्तव्य का निस्वार्थ:भाव से पालन करते हुए इसका सुधार करना चाहिये ....शेष  अगले ब्लॉग में.    

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!