※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -८-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , एकादशी, मंगलवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -८-
 

गत ब्लॉग से आगे….. इस समय गौजाति का भी बड़ा हास होता जा रहा है प्राचीन काल में एक-एक नगर में लाखों गौए रहा करती थी वाल्मीकीय रामायण के अयोध्याकाण्ड के ३२वे सर्ग में कथा आती है की भगवान् श्रीरामचन्द्र जी के पास त्रिजट नामक एक ब्राह्मण आये और उनसे धन की याचना की श्री रामचन्द्रजी ने उनसे कहाँ-‘विप्रवर ! मेरे पास बहुत सी गौए है आप अपन डंडा जितनी दूर फेक सकेंगे, वहां तक की सब गौए आपको मिल जाएँगी ’ ब्राह्मणदेव ने वैसा ही किया और उसको हजारों गौऐ प्राप्त हो गई, जिससे वे बड़े प्रसन्न हुए            

विचार कीजिये जहाँ विनोद के रूप में एक याचक को इस प्रकार हजारों गौए दान दी जाती है, वहां दाता के पास कितनी गौए हो सकती है ? भागवत दशम स्कन्ध के पूर्वार्ध में वर्णन मिलता है की नन्द-उपनन्द आदि गोपों के पास लाखों गौए रहा करती थी श्रीकृष्ण के जन्म-महोत्सव पर ही नन्दजी ने दो लाख गौओं का दान किया था (अ० ५) राजा नृग का इतिहास प्रसिद्ध ही है के वे हजारों गौओं का प्रतिदिन दान किया करते थे (भागवत दशम स्कन्ध उतरार्ध ६४) महाभारत काल में राजा विराट के पास लगभग लाख गौए थीं, जिनका हरण करने के लिए कौरवों की विशाल सेना ने त्रिगर्तराज शुशर्मा के साथ दो भागों में विभक्त होकर विराट नगर पर चढ़ाई की थी (महा० विराट० ३५)

उस समय गौओं की संख्या पर्याप्त होने के कारण दूध, दही, घी, मक्खन की भरमार रहती थी, पर आज तो औषध-सेवन में अनुपान के लिये भी गौ का शुद्ध घी प्राप्त होना कठिन हो रहा है फिर यज्ञ और दैनिक खान-पान के लिए तो प्राप्त होना बहुत ही कठिन है इस समय लाखों गौए तो किसी-किसी जिले में भी मिलनी कठिन है यह गौ-जाति का हास हम लोगों की उपेक्षा का ही परिणाम है ....शेष  अगले ब्लॉग में.

    श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!