※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -९-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , द्वादशी, बुधवार, वि० स० २०७०

 वर्तमान दोषों के निवारण की आवश्यकता -९-

 

गत ब्लॉग से आगे….. हमे समझना चाहिये की गौ अध्यात्मिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक-सभी दृष्टी में परम उपयोगी है गौ की दूध, दही, घी आदि से देवता, ऋषि, पितर, मनुष्य आदि सभी की तृप्ति होती है स्वास्थ्य की दृष्टी से गौ के दूध, दही, घी, सभी परम उपयोगी पदार्थ है गौ के दूध, दही, घी तथा गोबर-गोमूत्र के सेवन से अनेक प्रकार की बीमारियाँ दूर होती है गौ से उत्पन्न हुए बैलों से जैसी खेती होती है, वैसी ऊट, भैसे आदि पशुओं से नही हो सकती गौ और बैल के के गोबर-मूत्र  से खेती में बड़ी अच्छी खाद होती है, जिसके मुकाबले में अन्य खाद इतनी उपयोगी नही है अत: सभी दृष्टियों से गौ और बैल हमारे देश के लिए महान हितकर है

इसी से प्राचीन काल में लोगों की गौओं के प्रति बड़ी ही महत्व-बुद्धि, आदर और श्रद्धा-भक्ति थी और वे उनकी रक्षा करना अपना परम कर्तव्य मानते थे एवं उनकी रक्षा के लिए प्राणों की भी परवाह नही करते थे जिस समय राजा दिलीप नन्दिनी गौ की सेवा कर रहे थे, एक सिंह आया और गौ को खाने के लिए उद्धत हो गया तब राजा ने सिंह से कहाँ-‘तुम इसे छोड़ दो, मुझे खा लो ’ इस प्रकार वे गौ की रक्षा के लिए सिंह को अपने प्राण देने के लिए तैयार हो गए इससे उनका धर्म भी बच गया और प्राण भी बच गए; क्योकि वह सिंह नही था, गौ ही माया से सिंह बनकर राजा की परीक्षा ले रही थी (पद्धपुराण उत्तरखण्ड)

जिस समय पाण्डव इन्द्रप्रस्थ में राज्य करते थे, उन दिनों एक दिन लुटेरे किसी ब्राह्मण की गौए लेकर भाग गये अर्जुन ने जब ब्राह्मण की करुण पुकार सुनी, तब वे भाईयों के साथ की हुई शर्त का उल्लंघन करके उस कमरे में जाकर शस्त्र ले आये, जिस कमरे में द्रौपदी के साथ युदिष्ठर थे और लुटेरों का पीछा करके ब्राह्मण की गौए छुड़ा लाये इस प्रकार अर्जुन गौओं की रक्षा करके युधिष्ठर के रोकने पर भी नियमभंग के प्रायश्चित रूप में बारह वर्ष के लिए वन में चले गए (महा० आदि० २१२) ....शेष  अगले ब्लॉग में.

   
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!