※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

जरत्कारू मुनि का उपदेश


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , चतुर्दशी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

जरत्कारू मुनि का उपदेश

 

श्री जरत्कारू मुनि ने अपनी पत्नी से पतिसेवा का महात्म्य बतलाते हुए कहा है-

‘पति का अप्रिय करने वाली स्त्री का तप, उपवास, व्रत और दान आदि जो कुछ भी पुण्यकर्म है, सब के सब निष्फल हो जाते है ’ (ब्रह्मवैवर्त० प्रकति० ४६|३४)

 ‘जिस स्त्री के द्वारा पति पूजा गया, उसके द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण का पूजन हो चुका है पतिव्रता स्त्री के व्रत-पालन करने से पति ही साक्षात् परमेश्वर है ’ (ब्रह्मवैवर्त० प्रकति० ४६|३४)

 ‘समस्त दान, सम्पूर्ण यज्ञ, समस्त तीर्थों का सेवन, समस्त तप और समस्त व्रत तथा और भी जितने सब उपवासादिकधर्म है तथा जो सत्यभाषण, समस्त देवताओं का पूजन आदि सत्कर्म है, वे सब पति सेवा की सोलहवी कला के बराबर नही हो सकते ’ (ब्रह्मवैवर्त० प्रकति० ४६|३५-३६)

 ‘जो स्त्री इस पुण्यभूमि भारतवर्ष में पति सेवा करती है, वह अपने पति सहित परब्रह्म परमात्मा के साथ वैकुण्ठ को प्राप्त होती है ’ (ब्रह्मवैवर्त० प्रकति० ४६|३७)

 
‘हे सती ! जो बुरे कुल में उत्पन्न हुई स्त्री अपने पति का अप्रिय कार्य करती है तथा प्रियतम को अप्रिय वचन कहती है, उसका फल सुनो; वह स्त्री जब तक चन्द्रमा और सूर्य रहते है, तब तक कुम्भीपाक नरक में पड़ी रहती है और उसके बाद पति और पुत्र से रहित चण्डाल होती है   (ब्रह्मवैवर्त० प्रकति० ४६|३८-३९)
         
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!