※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 1 मार्च 2014

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण करने में स्वतन्त्र है -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन कृष्ण , अमावस्या, शनिवार, वि० स० २०७०

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण  करने में स्वतन्त्र है -१-

 

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में जो उपदेश दिया है, वह किसी सम्प्रदाय को सामने रखकर नही दिया है वह तो सबके लिए समान रूप से पालनीय है इसलिए गीता सार्वजनिक ग्रन्थ है गीता के उपदेश का हिन्दू तो आदर करते ही है, कितने ही इस्लाम धर्म के मानने वाले मुसलमान तथा ईसाई धर्म को मानने वाले लोग एव अन्य धर्मावलम्बी लोग भी इसका आदर करते है जर्मनी, अमेरिका आदि देशों के निवासियों से इसका बहुत आदर किया है

सुना गया है की योरप के किसी एक बड़े भारी पुस्तकालय में अनेक देशों की भाषाओँ और लिपियों की पुस्तके लाखों की संख्या में एकत्र की, जो सुव्यवस्था पूर्वक आलमारियों में सजाई हुई थी उस पुस्तकालय के बड़े हाल के मध्य में टेबल पर सुन्दर वस्त्र के ऊपर श्रीमद भगवदगीता की एक पुस्तक रखी हुई थी वहां एक भारतवासी सज्जन गए, उन्होंने उस पुस्तकालय के प्रधान से पुछा-‘टेबल पर सजाकर रखी हुई यह कौन सी पुस्तक है !’
 
उन्होंने उत्तर में कहाँ- ‘श्रीमद भगवतगीता
 
भारतीय सज्जन ने पुछा-‘भगवतगीता क्या है ?’
 
इस प्रश्न को सुनकर उन अधिकारी महोदय को बड़ा आश्चर्य हुआ उन्होंने हँस कर कहाँ-‘बड़े आश्चर्य की बात है की आप भारत में रह कर भी भारत के प्रधान और उच्च कोटि के महापुरुष श्रीकृष्ण के द्वारा अपने प्रिय मित्र अर्जुन को दिए हुए उपदेशरूप श्रीमदभगवतगीता-ग्रन्थ को ही जानते ! यह तो बहुत लज्जा की बात है
 
यह सुनकर वे भारतीय सज्जन बहुत ही लज्जित हुए उनपर उस प्रधान के उपर्युक्त वचनों का बड़ा असर पडा उन्होंने कहाँ-‘मैंने नाम तो सुना था, पर इसे देखा न था; अब मैं इसका अधयन्न करूँगा ’......शेष अगले ब्लॉग में

  श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!