※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

भारतका परम हित



|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल पञ्चमी, मंगलवार, वि०स० २०७०


** भारतका परम हित **
गत ब्लॉग से आगे.......एक और आवश्यक विषय है | इधर समाज-सुधार की दृष्टि से धर्मस्थानों की सम्पत्ति आदि के तथा साधुओं के सम्बन्ध में जो नये कानून बने हैं या बनने जा रहे हैं, उनसे यही पता लगता है कि ये प्रायः सारे कानून हिन्दुओं के लिए ही बनते हैं | भारत में शास्त्रों को माननेवाले और उनपर श्रद्धा करनेवाले ऐसे लोग बहुत हैं, जिनका किसी राजनीतिक दल से कोई सम्बन्ध नहीं है, पर जो बिना किसी राग-द्वेष के अपने सरल-सहज विश्वास के अनुसार ऐसा मानते हैं कि इन कानूनों से परम्परागत हिन्दू-धर्मपर आघात पहुंचा है या पहुँच रहा है | अतएव जैसे ईसाई-धर्म और इस्लाम-धर्म, उनके गिरजाघर-मस्जिद, उनके पादरी-पीर, फ़क़ीर-काजी, उनके सामाजिक आचार आदि के सम्बन्ध में सरकार कोई भी कानून न बनाकर उनकी धार्मिक मान्यताओं को सुरक्षित रखती है—जो उचित ही है, वैसे ही हिन्दू-धर्मकी मान्यता को भी सुरक्षित रखना सरकार का कर्तव्य है | इसलिए भारत की हिन्दू जनता सरकार से विनयपूर्वक प्रार्थना करती है कि सरकार ऐसा कोई कानून न बनाये, जिससे सनातनधर्मी, आर्यसमाजी, बौद्ध, जैन, सिख आदि हिन्दुओं के धर्मपर, उनके मठ-मन्दिर, गुरूद्वारे या पूजास्थलों पर तथा उनके साधु-सन्यासियों और भिक्षुओं पर आघात पहुँचता हो !
         साथ ही यह भी विनय है कि इधर कुछ समय से भारत में ईसाईलोग भोले-भाले गरीब भाई-बहिनों को फुसलाकर और लोभ दिखाकर उनका धर्म-परिवर्तन कर रहे हैं; उनपर शीघ्र कठोर रोक लगायी जाय | गो-वध सर्वथा बंद करने के लिए सभी प्रदेशों में कानून बने और जहाँ ऐसे कानून बन चुके हैं, वहाँ सावधानी से उनपर अमल किया जाय | स्वास्थ्यनाशक तथा गो-वध में सहायक वनस्पति-घी का प्रचार भी कानूनद्वारा शीघ्र रोका जाय |
         हाथकी बनी चीजों और हाथ से बुने कपड़े के प्रचार में सहायता की जाय और विशेष सुविधा दी जाय, जिससे गरीब जनता परिश्रम करके अपना जीवननिर्वाह कर सके | धान, चीनी, तेल, कपड़े आदि की मीलों का विस्तार होने से ढेकी, कोल्हू, चर्खा और करघा आदि चलानेवाले गरीबों के रोजगारमें बड़ी बाधा आ गयी है | इस ओर सरकार ध्यान दे रही है और कई प्रकार की सुविधाएँ सरकार ने दी भी हैं | इसके लिए सरकार को धन्यवाद है |
        लोकसभा तथा धारासभाओं के चुनाव के विषय में बहुतसे लोग पूछते हैं कि किनको मत (वोट) दिया जाय | इसके उत्तर में हमारा नम्र निवेदन है कि जो विशाल हृदय के स्वार्थत्यागी व्यक्ति हों, देश का यथार्थ हित चाहते हों, देशके हित के लिए अपने व्यक्तिगत हितका बलिदान करने को तैयार हों, देश के हित में ही अपनी स्वार्थ-सिद्धि मानते हों, गरीबों तथा दुखियों से सच्ची सहानुभूति रखते हों, मान-बड़ाई, पूजा-प्रतिष्ठा तथा धन-सम्पत्ति के किंकर न हों, अभक्ष्य-बक्षी न हों, सदाचारी हों, मादक वस्तुओं के शौक़ीन न हों, सच्चरित्र हों, दयालु हों, गो-वध को कानून के द्वारा बंद कराने के समर्थक हों, धर्मविरुद्ध कानूनों के विरोधी हों और ईश्वर,धर्म तथा लोक-परलोक को माननेवाले हों—ऐसे ही सज्जनों के तथा माता-बहिनों के पक्ष में वोट देना चाहिए, वे चाहे किसी भी दल के हों |
श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, ‘साधन-कल्पतरु’ पुस्तकसे कोड ८१४, गीताप्रेसगोरखपुर
 नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!