※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -१ –


 ।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

माघ शुक्ल, षष्ठी, बुधवार, वि० स० २०७०

 सत्संग और महात्माओं का प्रभाव  -१ –

 

गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी महाराज ‘सत्संग’ का महत्व बतलाते हुए कहते हैं-

बिनु सत्संग न हरी कथा तेहि बिनु मोह न भाग
मोह गएँ बिनु राम पद होई न दृढ अनुराग ।।

‘सत्संग के बिना हरी-कथा नही मिलती, हरी-कथा के बिना मोह का नाश नही होता और मोह का नाश हुए बिना भगवान् में दृढ प्रेम नही होता

साधारण प्रेम प्राप्त होने के तो और भी बहुत-से उपाय है, पर दृढ प्रेम मोह रहते नही होता और दृढ प्रेम के बिना भगवान् की प्राप्ति नही होती भगवान् मिलते ही है दृढ प्रेम से रामचरित मानस के बालकाण्ड में देवताओं के प्रति भगवान् श्रीशिवजी के  वचन है-

हरी व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना ।।

‘हरी सब जगह समान भाव से व्याप्त है और वे प्रेम से प्रगट होते है ’ इससे यह सिद्ध होता है की भगवान् प्रेम से मिलते है और प्रेम प्राप्त होता है सत्संग से इसलिए मनुष्य को सत्संग के लिए विशेष प्रयत्नशील होना चाहिये सत्पुरुषों का सेवन न मिले तो स्वाध्याय भी सत्संग के समान है .... शेष अगले ब्लॉग में.

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!