※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 3 मार्च 2014

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण करने में स्वतन्त्र है -३-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन शुक्ल, द्वितीया, सोमवार, वि० स० २०७०

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण  करने में स्वतन्त्र है -३-

 
गत ब्लॉग से आगे ...... अभिप्राय यह है की जो मनुष्य जिससे अपना परम हित- कल्याण हो, उस भाव और आचरण को तो ग्रहण करता है और जिससे अध:पतन हो उस भाव और आचरण का सर्वथा त्याग करता है, वही अपने द्वारा अपना उद्धार कर रहा है
 
इसके विपरीत, जो मनुष्य जिससे अपना अध:पतन हो, उस भाव और आचरण को तो ग्रहण करता है तथा जिससे अपना कल्याण हो, उस भाव और आचरण को ग्रहण नही करता, वही अपने द्वारा अपना अध:पतन करता है
 
अत: जो मनुष्य अपने द्वारा अपने उद्धार का उपाय करता है, व स्वयं ही अपन मित्र है ; इसके विपरीत, जो मनुष्य समझ-बूझ कर अपने कल्याण के विरुद्ध आचरण करता है, वह स्वयं ही अपना शत्रु है

अब यह भली-भांति विचार करना चाहिये की अपने द्वारा अपना उद्धार करना क्या है और अपने द्वारा अपना अध:पतन करना क्या है ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!