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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, द्वितीया, सोमवार,
वि० स० २०७०
गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण करने में स्वतन्त्र है -३-
गत ब्लॉग से आगे ...... अभिप्राय यह है की जो
मनुष्य जिससे अपना परम हित- कल्याण हो, उस भाव और आचरण को तो ग्रहण करता है और
जिससे अध:पतन हो उस भाव और आचरण का सर्वथा त्याग करता है, वही अपने द्वारा अपना
उद्धार कर रहा है ।
इसके विपरीत, जो मनुष्य जिससे
अपना अध:पतन हो, उस भाव और आचरण को तो ग्रहण करता है तथा जिससे अपना कल्याण हो, उस
भाव और आचरण को ग्रहण नही करता, वही अपने द्वारा अपना अध:पतन करता है ।
अत: जो मनुष्य अपने द्वारा अपने उद्धार का उपाय करता
है, व स्वयं ही अपन मित्र है ; इसके विपरीत, जो मनुष्य समझ-बूझ कर अपने कल्याण के
विरुद्ध आचरण करता है, वह स्वयं ही अपना शत्रु है ।
अब यह भली-भांति विचार करना चाहिये की अपने द्वारा
अपना उद्धार करना क्या है और अपने द्वारा अपना अध:पतन करना क्या है ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!