※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 6 मार्च 2014

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण करने में स्वतन्त्र है -६-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन शुक्ल, पंचमी, गुरूवार, वि० स० २०७०

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण  करने में स्वतन्त्र है -६-

 

गत ब्लॉग से आगे ...... एक और समता है और दूसरी और विषमता इन दोनों में कौन उत्तम और कौन निकृष्ट है- इसका निर्णय करे विचार करने पर यही निर्णय होता है की समता ही अमृत है और विषमता (राग-द्वेष) ही विष है, जो सब अनर्थों की जड है अत: समता को दाहिनी और की पंक्ति में और विषमता को बायीं और की पंक्ति में रखे

एक और दुसरे को हित करना है और दूसरी और दूसरों का अहित करना है इन दोनों में से कौन उत्तम है, इस पर विचार करने पर यही निर्णय प्राप्त होता है की किसी को दुःख न पंहुचाकर अहंकार, ममता, स्वार्थ और आसक्ति से रहित हो तन, मन, धन आदि द्वारा हर प्रकार से उसको  सुख पहुचाना ही अपने लिए कल्याणकारक और उत्तम है इसके विपरीत काम, क्रोध लोभ, मोह, भय आदि के वश में होकर किसी भी प्रकार कहीं कभी किसी निमित्त से किसी प्राणी की आत्मा को किन्चितमात्र भी दुःख पहुचानाअपने लिए पतनकारक है जब यह निर्णय हो गया की दूसरों का हित करना हमारे लिए कल्याणकारक है और दुसरे का अहित करना हमारे लिए पतनकारक है, तब हमे दूसरोंके हित को दाहिनी और की पंक्ति में और दुसरे के अहित को बायीं और की पंक्ति में रखना चाहिये ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!