※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण करने में स्वतन्त्र है -७-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

फाल्गुन शुक्ल, षष्ठी, शुक्रवार, वि० स० २०७०

गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण  करने में स्वतन्त्र है -७-

 

गत ब्लॉग से आगे ...... एक और सत्य भाषण  है और एक और असत्य भाषण है इन दोनों में कौन उत्तम और कल्याणकरक है इस विषय में अपने आत्मा से पूछने पर यही उत्तर मिलता है की जो आत जैसी देखी, सुनी, समझी हो, उसको न घटाकर, न बढ़ाकर कपट छोड़कर ज्यों-का-त्यों सत्य कह देना ही उत्तम है इसके विपरीत, काम-क्रोध, लोभ-मोह और भय के वश में होकर मिथ्याभाषण करना पाप है जब यह निर्णय हो गया, तब सत्यभाषण को दाहिनी और की पंक्ति में और असत्य भाषण को बायीं और की पंक्ति में रखे

एक और ब्रह्मचर्य का पालन है और एक और व्यभिचार इन दोनों के विषय में विचार करने पर यही निर्णय मिलता है की ब्रह्मचर्य का पालन करना अर्थात किसी भी स्त्री या बालक के साथ कुत्सितभाव से श्रवण, दर्शन, स्पर्श, वार्तालाप, एकान्तवास, चिन्तन, सहवास, हँसी-मजाक आदि क्रियाओं को न करना और कामोद्दीपक वस्तुओं का सेवन न करना ही श्रेष्ठ और कल्याणकारक है किन्तु काम, क्रोध, लोभ, मोह के वशीभूत होकर इसके विपरीत आचरण करना-व्यभिचार करना महान पतनकारक है अत: ब्रह्मचर्य को दाहिनी पंक्ति में और व्यभिचार को बायीं पंक्ति में रखे ......शेष अगले ब्लॉग में            

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!