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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, षष्ठी, शुक्रवार,
वि० स० २०७०
गीता के अनुसार मनुष्य अपना कल्याण करने में स्वतन्त्र है -७-
गत ब्लॉग से आगे ...... एक और सत्य भाषण है और एक और असत्य भाषण है । इन दोनों में कौन उत्तम और कल्याणकरक है । इस विषय में अपने आत्मा से पूछने पर यही उत्तर मिलता
है की जो आत जैसी देखी, सुनी, समझी हो, उसको न घटाकर, न बढ़ाकर कपट छोड़कर
ज्यों-का-त्यों सत्य कह देना ही उत्तम है । इसके विपरीत, काम-क्रोध, लोभ-मोह और भय के वश में
होकर मिथ्याभाषण करना पाप है । जब यह निर्णय हो गया, तब सत्यभाषण को दाहिनी और की पंक्ति में और असत्य भाषण
को बायीं और की पंक्ति में रखे ।
एक और ब्रह्मचर्य का पालन है और एक और व्यभिचार । इन दोनों के विषय में विचार करने पर यही निर्णय
मिलता है की ब्रह्मचर्य का पालन करना अर्थात किसी भी स्त्री या बालक के साथ
कुत्सितभाव से श्रवण, दर्शन, स्पर्श, वार्तालाप, एकान्तवास, चिन्तन, सहवास,
हँसी-मजाक आदि क्रियाओं को न करना और कामोद्दीपक वस्तुओं का सेवन न करना ही
श्रेष्ठ और कल्याणकारक है । किन्तु काम, क्रोध, लोभ, मोह के वशीभूत होकर इसके विपरीत आचरण करना-व्यभिचार
करना महान पतनकारक है । अत: ब्रह्मचर्य को दाहिनी पंक्ति में और व्यभिचार को बायीं पंक्ति में रखे ।......शेष अगले ब्लॉग में ।
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!