※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

गीताप्रेस के संस्थापक सेठ जी -१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र शुक्ल, चतुर्दशी, सोमवार, वि० स० २०७०

गीताप्रेस के संस्थापक -  प्रस्तावना -१-

 
लेखनी से आबद्ध न होने वाले ऐसे महापुरुष का जीवन चरित्र है जो साधारण गृहस्थ होकर भी परम ज्ञाननिष्ठ, साधारण व्यापारी होकर भी उच्चकोटि के दार्शनिक, निष्काम के आचार्य, पहले करनी करके पुन: कथनी कहने वाले, सादगी व सरलता के प्रतिमूर्ति, नियम के पक्के, मानव-मात्र भगवतप्राप्ति के लिए अग्रसर हो-इसके लिए जीवन पर्यन्त अध्यात्मिक प्रेरक, गीता-प्रचार के लिए गीताप्रेस, भगवत-चिन्तन और भगवतप्राप्ति हेतु साधन-भजन-सत्संग सामूहिक रूप से लोग कर सके इसके लिए गीताभवन (ऋषिकेश, स्वर्गाश्रम), भरतीय शिक्षण पद्दति से ज्ञानवान, चरित्रवान तथा भगवतप्राप्ति हेतु प्रयासी बच्चे तैयार हो सके इसके लिए ऋषिकुल ब्रह्मचर्यश्रम (चुरू) आदि के संस्थापक, कर्तव्य-परायण, सच्चे-वात्सल्य तथा व्यवहार के निर्वाहक, चराचर के सच्चे सुहृद, अमानी और निरन्तर भगवान् के चिन्तन में निमग्न रहने वाले  

नाम  : जयदयाल गोयन्दका

उपनाम :  सेठजी

आविर्भाव : अधिक ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, बृहस्पति वार, विक्रम सम्वंत १९४२ (दिनाक ४ जून १८८५ )

महाप्रयाण : वैशाख कृष्ण द्वितीया, शनिवार, विक्रम सम्वंत २०२२(दिनाक १७ अप्रैल १९६५)

पिता : श्री खूब चन्द जी गोयन्दका

माता : श्रीमती श्यो बाई

जन्म स्थान : चुरू, राजस्थान

प्रसिद्धि का कारण : आध्यात्मिक प्रेरक, निष्काम भक्ति के प्रतिमूर्ती एवं गीताप्रेस, गीताभवन व गोविन्दभवन आदि के संस्थापक  ।... शेष अगले ब्लॉग में         
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्री विश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!