※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

गीताप्रेस के संस्थापक - प्रस्तावना -२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

चैत्र शुक्ल, पूर्णिमा, मंगलवार, वि० स० २०७०

गीताप्रेस के संस्थापक -  प्रस्तावना -२-

गत ब्लॉग से आगे.... कार्य क्षेत्र सेठजी का जन्म एक व्यापारिक घर में हुआ था इसलिए सेठजी जहाँ रहते थे, जाते थे वहीं उनका कार्यक्षेत्र रहा । जन्मस्थान चुरू, व्यापार-स्थल सर्वप्रथम चुरू ततपश्चात सीतामढ़ी, चक्रधरपुर एवं उसके बाद बाकुंडा रहा । कार्य की दृष्टि से कोलकत्ता, गोरखपुर और स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) इत्यादि प्रमुख स्थल थे । इसके अतिरिक्त सेठजी ने भगवान भजनाश्रम, वृन्दावन एवं नवदीप का कार्य भी संभाला था ।    

प्रणीत साहित्य-सेठजी ने भगवदगीता पर एक टीका तैयार की थी जो गीता-तत्वविवेचनी के नाम से प्रकाशित हुई है । यह इनकी परम प्रिय पुस्तक थी । इसके अतिरिक्त इनके द्वारा लिखित एवं प्रवचनों के आधार पर प्रकाशित लगभग ११५ पुस्तके है । गीता की बारहवी अध्याय के भावों पर उनकी गजल गीता नमक कविता है । रात्रि में सोते समय इनका पाठ करने से विशेष लाभ होगा, ऐसा बताया करते थे । स्वामी रामसुखदास जी महाराज सेठ जी के द्वारा लिखित ‘ध्यानवस्था में प्रभु से वार्तालाप’ एवं ‘प्रेमभक्तिप्रकाश’ नामक पुस्तकों को प्रासादिक ग्रन्थ बताया करते थे । वे कहाँ करते थे जैसे श्रीमदभगवदगीता, रामचरितमानस पाठक पर स्वयं कृपा करते है, वही स्थिति इन पुस्तकों की है । इसके अतिरिक्त संक्षिप्त महाभारत एवं अन्य कई पुराणों का संक्षिप्त रूप से प्रकाशन सेठ जी के सम्पादन में हुआ ।... शेष अगले ब्लॉग में         
  

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!