※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कार्य पर अग्रसर -४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख कृष्ण, द्वितीया, गुरूवार, वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-कार्य पर अग्रसर -४-

 
गत ब्लॉग से आगे.... सेठ जी परम ज्ञानी व तपस्वी थे । हमारी धारणा में वे मानव-कल्याण के लिए भगवान् द्वारा भेजे गए थे । सेठ जी के जन्म-स्थान चुरू में एक दिन नाथ-सम्प्रदाय के एक विरक्त सन्त श्री मंगलनाथ जी पधारे । उस समय सेठजी की आयु लगभग १४ वर्ष थी । इनको देखकर सेठजी को लगा की ये ज्ञान-वैराग्य-त्याग के साक्षात् मूर्ती है, मुझे भी ऐसा बनना है । इनके सत्संग के बाद सेठजी ने भगवतप्राप्ति के हेतु अपनी कठिन साधना आरम्भ कर दी । साधना के साथ ही सद्ग्रंथों का अधयन्न करना और शास्त्रवचनों को हृदयंगम करना जारी रहा । भगवत्प्राप्ति के साधन शास्त्रों में अनेकों बताये गए है लेकिन वे कुछ कठिन से दीखाई देते है, उन्ही शास्त्रों का गहन अधयन्न करने पर सेठजी को लगा की मानवमात्र भगवतप्राप्ति सहज में कर सकता है, इसमें कोई बाधा नहीं है, वह चाहे पढ़ा हो या बिना पढ़ा हो, स्त्री हो या पुरुष सभी भाई-बहन कर सकते है । फिर तो सेठजी को एक लगन लग गयी की संसार के आवागमनरुपी दावाग्नि में मानवमात्र को कैसे बचाया जाये । सांसारिक अनित्य सुख का त्याग कराके सभी भाई-बहन किस तरह से भगवतप्राप्ति के लिए प्रेरित किया जाय-इस विशेष कार्य के लिए वह अग्रसर हो गए ।

श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज ने आपको श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रश सेठ नाम से सम्बोधन प्रारम्भ कर दिया, तबसे आपको सेठ जी के नाम से कहा जाने लगा । आपको लगभग २२ वर्ष की आयु में तत्व की प्राप्ति हो गयी । जिस साधन के अनुभव से और जिस तत्व के साक्षात्कार से आपके ह्रदय में शान्ति, महान आनन्द और दिव्य प्रेम की प्राप्ति हुई-वह शान्ति, आनन्द और भगवत्प्रेम जन-जन को मिले, मनुष्य जन्म-मरण के महानदुःख से दुःख पा रहे है, इस दुःख से उनको कैसे छुडाया जाये, यह विचार आपके मन में हर समय रहता था ।... शेष अगले ब्लॉग में        

  

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!