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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, तृतीया, शुक्रवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-निष्काम के आचार्य -४-
गत ब्लॉग से आगे.....भगवान् अपने है हमारा अहित कर ही
नहीं सकते । उनसे कुछ माँगना तुच्छता है ; क्योकि वे हमको कितना देना चाहते हैं,
कहीं हम छोटी वस्तु माँग कर उनकी सीमा तो नहीं तोड़ रहे है-इन सब तथ्यों के पोषक
सेठजी ने सदैव भगवान् की निष्काम भक्ति व कर्म किया । वे कहाँ करते थे की भगवान्
से कुछ भी माँगना अपने आपको भगवान् से बुद्धिमान समझना है । स्वामी
रामसुखदास जी महाराज कहा करते थे की जिस प्रकार ज्ञानमार्ग के आचार्य शंकराचार्यजी
एवं भक्तिमार्ग के आचार्य रामानुजाचार्यजी
है इसी प्रकार सेठजी निष्काम के आचार्य है ।
एक बार सेठजी रोगग्रस्त हो
गए । उनके सत्संगियों के विचार किया की भगवान् से उनके स्वस्थ्य होने की प्रार्थना
करनी चाहिये । ऐसा सुनकर सेठजी उन लोगों से बोले की जो मेरे लिए अनुष्ठान करेंगे
वे मेरे मित्र नहीं शत्रु है, हमारे प्यारे का विधान बदलना चाहते है । यदि तुम लोग
ऐसा करोगे तो मैं भगवान् से यही प्रार्थना करूँगा की वे तुम्हारी प्रार्थना नहीं
सुने, उनके जचे वैसे करे ।
एक बार भगवान् विष्णु
ने अपने चतुर्भुज-रूप से सेठजी को साक्षात् दर्शन दिया । सेठजी ने सोचा की इनको तो
मैने बुलाया नहीं था फिर ये क्यों आये । उसी क्षण उन्हें स्फुरणा हुई की
निष्काम-भक्ति के प्रचार के लिए ही इन्होने दर्शन दिए है । आपने पूरे
जीवनभर में केवल एक ही सकाम प्रार्थना भगवान् सूर्य से की थी की यदि परस्त्री में
मेरी पापबुद्धि हो जाये तो मुझे भस्म कर दे । वे परस्त्री को स्पर्श तक नहीं करते
थे तथा बिना घरवालों को साथ लिए स्त्रियों को अकेले सत्संग इत्यादि में आने से मना
करते थे, लेकिन धर्म, नीति और मर्यादा का पालन करना उनके लिए अत्यन्त ही सहज और
सरल था । कुछ प्रसंग इस प्रकार हैं-
एक बार निष्काम-भक्ति के उदाहरण में सेठजी ने कहाँ की यदि
कुछ विधर्मी मेरी पत्नी के साथ बलात्कार का प्रयास करे तो मैं अपनी शक्तिभर उसे
बचाने का प्रयास करूँगा, किन्तु मेरे मन में यह नहीं आएगा की हे भगवान् ! आप रक्षा
करे ।
* * * *
एक बार सेठ जी को बिची (एक्जीमा) हो गयी । सेठजी बोले की
बिची की कोई अनुभूत दवाई ले आओं । किसी ने पुछा की सेठजी आप तो निष्काम है फिर
अनुभूत दवाई मगाने का क्या तात्पर्य है । सेठजी बोले की हम क्रिया पागल की तरह
थोड़े ही करेंगे । काम तो बड़ी सावधानी से बुद्धिमान की तरह करना है । परिणाम में
समता रहे यह निष्काम भाव है ।... शेष अगले ब्लॉग में ।
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!