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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, चतुर्थी, शनिवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-निष्काम के आचार्य -५-
गत ब्लॉग से आगे.....सेठजी के बिची होने पर एक सज्जन
उनके दवाई लगा रहे थे । सेठ जी बोले की जितने प्रेम से आप मेरे दवाई लगा रहे हैं
वैसे है औरों के भी लगायें तो मुक्ति हो जाय ।
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घनश्याम जी से सेठजी ने अन्त समय में पुछा भगवान् को जाकर
क्या कहोगे । घनश्याम जी बोले की उनसे कहूँगा की सारे संसार का भ्रष्टाचार मिटा दे
। सेठ जी बोले-नहीं भाई नहीं, मालिक को हुक्म थोड़े ही देना चाहिये । तब घनश्याम जी
ने पुछा क्या बोलू । तब सेठजी ने कहा की बोलना की आपको जचे जिस तरह करे ।
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एक बार सेठजी के सिर में दर्द हो रहा था । किसी भाई ने कहाँ
की आप ध्यान लगा ले तो सर दर्द दूर हो जायेगा । सेठजी बोले की सिर-दर्द को दूर
करने के लिए ध्यान लगाऊ ।
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स्वर्गाश्रम में एक बार सेठजी वटवृक्ष के नीचे बैठे थे । एक
विदेशी कमरे से उनका चित्र लेने लगा । उन्होंने अपने चेहरे पर गमछा डाल दिया । सेठजी
अपना चित्र खिचवाने, छपवाने, पुजवाने इत्यादि के विरोधी थे ।
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एक बार किस सज्जन ने कहाँ की आप ऋषिकुल चुरू के लिए फण्ड
जमा कर दे ताकि ब्याज से संस्था आराम से चल सके । सेठजी बोले की यदि अच्छा काम
होगा तो धन की कमी रहेगी नहीं । ख़राब काम हमे चलाना नहीं है ।
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वे सकाम अनुष्ठान के पक्ष में बिलकुल नहीं थे । कोई सकाम
अनुष्ठान के विषय में पूछता तो उत्तर दे देते की मुझे अभ्यास नहीं है ।.. शेष अगले ब्लॉग में ।
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!