※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-निष्काम के आचार्य -५-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख कृष्ण, चतुर्थी, शनिवार, वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-निष्काम के आचार्य -५-

 

गत ब्लॉग से आगे.....सेठजी के बिची होने पर एक सज्जन उनके दवाई लगा रहे थे । सेठ जी बोले की जितने प्रेम से आप मेरे दवाई लगा रहे हैं वैसे है औरों के भी लगायें तो मुक्ति हो जाय ।

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घनश्याम जी से सेठजी ने अन्त समय में पुछा भगवान् को जाकर क्या कहोगे । घनश्याम जी बोले की उनसे कहूँगा की सारे संसार का भ्रष्टाचार मिटा दे । सेठ जी बोले-नहीं भाई नहीं, मालिक को हुक्म थोड़े ही देना चाहिये । तब घनश्याम जी ने पुछा क्या बोलू । तब सेठजी ने कहा की बोलना की आपको जचे जिस तरह करे ।  

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एक बार सेठजी के सिर में दर्द हो रहा था । किसी भाई ने कहाँ की आप ध्यान लगा ले तो सर दर्द दूर हो जायेगा । सेठजी बोले की सिर-दर्द को दूर करने के लिए ध्यान लगाऊ ।

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स्वर्गाश्रम में एक बार सेठजी वटवृक्ष के नीचे बैठे थे । एक विदेशी कमरे से उनका चित्र लेने लगा । उन्होंने अपने चेहरे पर गमछा डाल दिया । सेठजी अपना चित्र खिचवाने, छपवाने, पुजवाने इत्यादि के विरोधी थे ।

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एक बार किस सज्जन ने कहाँ की आप ऋषिकुल चुरू के लिए फण्ड जमा कर दे ताकि ब्याज से संस्था आराम से चल सके । सेठजी बोले की यदि अच्छा काम होगा तो धन की कमी रहेगी नहीं । ख़राब काम हमे चलाना नहीं है ।

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वे सकाम अनुष्ठान के पक्ष में बिलकुल नहीं थे । कोई सकाम अनुष्ठान के विषय में पूछता तो उत्तर दे देते की मुझे अभ्यास नहीं है ।.. शेष अगले ब्लॉग में        

  

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!