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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, पञ्चमी, रविवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-निष्काम के आचार्य -६-
गत ब्लॉग से आगे.....गोविन्द भवन में एक सत्संगी को
उन्होंने बताया की अभी तुम्हारे धारणा है की मेरे सत्संग से तुम्हे मुक्ति मिल
जाएगी, इसलिए मेरे से प्रेम करते हो, यदि तुम्हारे जच जाय की मेरे संग से तुम्हे
नरक में जाना पड सकता है तब भी मेरे से प्रेम रखो तब वह निष्काम-प्रेम है ।
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एक बार सेठजी गोरखपुर के कुष्ठाश्रम की एक सभा में गए ।
सेठजी से भी कुछ बोलने को कहा गया । उन्होंने कहा-आपलोग जो यह सेवा का काम करते है
यह बहुत अच्छा है, परन्तु आप जिनकी सेवा करते हैं, उनका अपने ऊपर ऋण मानना चाहिये,
कारण आपने तो समय लगाकर उनकी भौतिक सेवा की और आपका निस्कामभाव से अन्त:करण शुद्ध
होकर भगवान् के निकट पहुच गए । इसलिए बड़ी सेवा तो आपकी हुई, यदि ये सेवा का मौका
नहीं देते तो आपको यह अलौकिक लाभ कैसे मिलता ।
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एक दिन गीताभवन में किसी का एक जूता सेठजी के पाँव की ठोकर
से आगे खिसक गया । सेठजी गोपाल जी मोहता का हाथ पकडे हुए थे वे दो कदम आगे चल कर
वापस लौटे और उस जूते को यथास्थान करके बोले तुम लोगों के रग-रग में सकामता भारी
पड़ी है । गोपल जी ने कहा की जूता ठीक करने में सकामता निष्कामता क्या हुई । सेठजी
ने कहा की यदि हमारा जूता पीडीए रहता तो तुम अपने हाथों से ठीक करते । अपने स्थान
पर न मिलने के कारण जिसका जूता है उसे तो खोजना पड़ता । तुम्हे जिसमे लाभ दीखे वह
काम तो करना, नहीं तो नहीं करना । सकामता और निष्कामता के कोई सींग पूछ थोड़े ही
लगती है ।
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एक आर किसी के स्वास्थ्य के लिए किसी ने मृत्युंजय जप
करवाने के लिए पुछा । सेठ जी ने डाटकर कहा सलूके (जूते सिलने के लिए काम में लिया
जाने वाला चमड़े का धागा) लिए भैस काटना चाहते हो । इस समय तो उसे भगवत्प्राप्ति हो
सकती है । ..... शेष अगले ब्लॉग में ।
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!