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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, सप्तमी, सोमवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-अहिंसा के पुजारी -७-
गत ब्लॉग से आगे.....सेठजी परम भागवत थे फिर उन्हें
जीवहिंसा कैसे सहन होती । प्रवचन करते समय उन्हें एक बार पता चला की उनके द्वारा
पहने हुए जूते का चमडा हिंसा से प्राप्त है अथवा अहिंसक है या पता नहीं । उन्होंने
उसी समय चमड़े का जूता पहनना छोड़ दिया । प्रवचन स्थल से नंगे पाँव ही आये तथा काफी
दिन बिना जूते के ही घुमते-फिरते रहे । फिर उन्होंने मोटरसाइकिल के पुराने टायरों
के सोल तथा ऊपर कैनवास का कपडा लगवाकर जूते का निर्माण करवाने का व्यवस्था की ।
अपने साथ ही अन्य लोगों को भी हिंसा रहित वस्तु प्रयोग में लाने के लिए
जीवन-पर्यन्त प्रेरित करते रहे ।
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महिलाओं के सोभाग्यावती होने का एक लक्षण उनके द्वार पहनी
गयी चूड़ियाँ है । उन दिनों चूड़ियाँ हिंसा से प्राप्त लाख से बनती थी । सेठजी ने
सत्संगियों को समझाकर घरों में लाख के बदले काँच की चूड़ियों का प्रचलन कराया ।
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उनके समय में विदेशों वस्त्रों का बहुत बोलबाला हो गया था
जिसकी बुनाई में प्रयुक्त मांड में चर्बी लगती थी । इससे बचने के लिए सेठजी ने हस्तनिर्मित
वस्त्रपहनने की सलाह दी । जब लोगों ने प्रश्न किया की ये सब शुद्ध समान कैसे
मिलेंगे तो उन्होंने गोविन्द भवन, कोलकत्ता में कारीगर रखकर जूते निर्माण का कार्य
प्रारम्भ किया तथा हस्तनिर्मित वस्त्र एवं काँच की चूड़ियाँ भी उपलब्ध करवाई । ..... शेष अगले ब्लॉग में ।
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!