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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, अष्टमी, मंगलवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-दूरदर्शिता -८-
गत ब्लॉग से आगे......छोटी-से-छोटीबात कहीं समाज के लिए
घातक न बन जाये सेठजी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे । उनकी पैनी बुद्धि आगामी
दुष्परिणाम को जान जाती थी । एक बार कोई मीराबाई का भजन-‘म्हें तो गुण गोविन्द का
गास्याँ ए माय राणाजी रूठे तो म्हारों काई करसी ।’ बड़े चाव से गा रहा था । आवाज
सुनते ही सेठजी ने आदमी भेजकर इस भजन को गाने से रोकने को कहा-लोग अचम्भे में पड
गए की सेठजी को आखिर मीराबाई का यह भजन अच्छा क्यों नहीं लगा । सबके मनोबल को
समझकर सेठजी ने लोगों को बताया की आजकल की स्त्रियाँ मीरा तो बनेगी नहीं, हाँ यह
भजन सुनकर घरवालों की अवेहलना अवश्य शुरू कर देंगी । इससे उच्छृंखलता बढ़ सकती है ।
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एक बार कोई विशिष्ट व्यक्ति परलोक चला गया । उसके शुभेछु
लोग उसका स्मारक बनवाना चाहते थे । सेठ जी ने अपने सत्संग में लोगों को बताया था
की जो लोग दुसरे का स्मारक बनवाना चाहते है उनके मन में अपना स्मारक बनवाने की
इच्छा रहती है । सेठजी ने किसी व्यक्ति के स्मारक अथवा पूजा-अर्चा के विरुद्ध थे ।
मनुष्य को ईश्वर का पूजक होना चाहिये, उनकी भक्ति ही सर्वोपरि है । वर्तमान
गुरुपरम्परा के विरोधी थे, सच्चे गुरु तो मिलते नहीं और वास्तविक गुरु भगवान् को
पूछते नहीं ।
सेठजी ने कहा की मैं दुसरे के मरने पर यदि स्मारक बनाना
चाहता हूँ तो इसका अर्थ यह है की मैं भी अपने मरने पर स्मारक बनवाना चाहता हूँ ।
मेरे मरने पर कोई स्मारक बनाना चाहेगा तो उसे मैं अपना अनुयायी नहीं मानता । .....
शेष अगले ब्लॉग में ।
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!