※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-दूरदर्शिता -८-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख कृष्ण, अष्टमी, मंगलवार, वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-दूरदर्शिता -८-


गत ब्लॉग से आगे......छोटी-से-छोटीबात कहीं समाज के लिए घातक न बन जाये सेठजी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे । उनकी पैनी बुद्धि आगामी दुष्परिणाम को जान जाती थी । एक बार कोई मीराबाई का भजन-‘म्हें तो गुण गोविन्द का गास्याँ ए माय राणाजी रूठे तो म्हारों काई करसी ।’ बड़े चाव से गा रहा था । आवाज सुनते ही सेठजी ने आदमी भेजकर इस भजन को गाने से रोकने को कहा-लोग अचम्भे में पड गए की सेठजी को आखिर मीराबाई का यह भजन अच्छा क्यों नहीं लगा । सबके मनोबल को समझकर सेठजी ने लोगों को बताया की आजकल की स्त्रियाँ मीरा तो बनेगी नहीं, हाँ यह भजन सुनकर घरवालों की अवेहलना अवश्य शुरू कर देंगी । इससे उच्छृंखलता बढ़ सकती है ।

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एक बार कोई विशिष्ट व्यक्ति परलोक चला गया । उसके शुभेछु लोग उसका स्मारक बनवाना चाहते थे । सेठ जी ने अपने सत्संग में लोगों को बताया था की जो लोग दुसरे का स्मारक बनवाना चाहते है उनके मन में अपना स्मारक बनवाने की इच्छा रहती है । सेठजी ने किसी व्यक्ति के स्मारक अथवा पूजा-अर्चा के विरुद्ध थे । मनुष्य को ईश्वर का पूजक होना चाहिये, उनकी भक्ति ही सर्वोपरि है । वर्तमान गुरुपरम्परा के विरोधी थे, सच्चे गुरु तो मिलते नहीं और वास्तविक गुरु भगवान् को पूछते नहीं ।

सेठजी ने कहा की मैं दुसरे के मरने पर यदि स्मारक बनाना चाहता हूँ तो इसका अर्थ यह है की मैं भी अपने मरने पर स्मारक बनवाना चाहता हूँ । मेरे मरने पर कोई स्मारक बनाना चाहेगा तो उसे मैं अपना अनुयायी नहीं मानता । ..... शेष अगले ब्लॉग में      
  

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!