※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-आज्ञापालन -९-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख कृष्ण, नवमी, बुधवार, वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-आज्ञापालन -९-


गत ब्लॉग से आगे.....सेठजी का आज्ञापालन अद्वितीय था । समाज के सजग प्रहरी से कोई भूल हो जाय यह कैसे सम्भव है लोकहितार्थ ही जिनका जन्म हो उसकी क्रिया में कोई कमी रहे असम्भव है । इनके बचपन की कुछ घटनाएँ द्रष्टव्य है-

एक बार सेठजी के पिता श्रीखूबचन्द जी ने इन्हें गर्मी की रात्रि में पंखा झलने को कहा । ये पंखा झलने लगे, ठंडी हवा पाकर इनके पिता जी गाढ़ निंद्रा में सो गए । ये सारी रात पंखा झलते रहे । प्रात: लगभग चार बजे जब इनके  पिताजी की नीद टूटी तो इनको पंखा झलते पाया । पिता जी ने पुछा के जल्दी उठकर आ गया क्या ? ये मौन रहे । अब इनके पिताजी को समझते देर न लगी की यह तो रात्रि से ही पंखा झल रहा है । उन्होंने बड़े प्यार से कहा की भविष्य में यदि मैं सेवा कहूँ और मुझे नीद आ जाये तो चले जाना ।

*      *      *      *

गर्मी के दिन थे, सेठजी बाहर से घर आये । अपनी माता से कहा की माँ मुझे जोर से प्यास लगी है, पीने के लिए पानी दे-दे । माताजी पानी के लिए घर के अन्दर चली गयी और ये बैठकर थकान मिटा रहे थे । इसी बीच इनके पिता आ गए और इनसे अपनी दवा लाने के लिए बाजार जाने को कहा । ये जल पीने के लिए प्रतीक्षा किये बिना ही तुरन्त दवा लाने चल दिए । इनके बाजार जाते ही माताजी पानी लेकर आयीं । सेठजी को न देखकर अपने पति से पूछी की जैद कहाँ गया । उत्तर मिला की वह तो मेरी दवा लेने बाजार गया । इनके पिता जी को यह समझ में आ गया की पानी पीने में समय लगाये बिना वह मेरी दवा लेने बाजार चला गया ? ऐसा आज्ञापालन क्या कोई साधारण पुत्र कर सकता है ? ..... शेष अगले ब्लॉग में       
  

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!