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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण, नवमी, बुधवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-आज्ञापालन -९-
गत ब्लॉग से आगे.....सेठजी का आज्ञापालन अद्वितीय था ।
समाज के सजग प्रहरी से कोई भूल हो जाय यह कैसे सम्भव है लोकहितार्थ ही जिनका जन्म
हो उसकी क्रिया में कोई कमी रहे असम्भव है । इनके बचपन की कुछ घटनाएँ द्रष्टव्य
है-
एक बार सेठजी के पिता श्रीखूबचन्द जी ने इन्हें गर्मी की
रात्रि में पंखा झलने को कहा । ये पंखा झलने लगे, ठंडी हवा पाकर इनके पिता जी गाढ़
निंद्रा में सो गए । ये सारी रात पंखा झलते रहे । प्रात: लगभग चार बजे जब इनके पिताजी की नीद टूटी तो इनको पंखा झलते पाया ।
पिता जी ने पुछा के जल्दी उठकर आ गया क्या ? ये मौन रहे । अब इनके पिताजी को समझते
देर न लगी की यह तो रात्रि से ही पंखा झल रहा है । उन्होंने बड़े प्यार से कहा की
भविष्य में यदि मैं सेवा कहूँ और मुझे नीद आ जाये तो चले जाना ।
* * * *
गर्मी के दिन थे, सेठजी बाहर से घर आये । अपनी माता से कहा
की माँ मुझे जोर से प्यास लगी है, पीने के लिए पानी दे-दे । माताजी पानी के लिए घर
के अन्दर चली गयी और ये बैठकर थकान मिटा रहे थे । इसी बीच इनके पिता आ गए और इनसे
अपनी दवा लाने के लिए बाजार जाने को कहा । ये जल पीने के लिए प्रतीक्षा किये बिना ही तुरन्त दवा लाने
चल दिए । इनके बाजार जाते ही माताजी पानी लेकर आयीं । सेठजी को न देखकर अपने पति
से पूछी की जैद कहाँ गया । उत्तर मिला की वह तो मेरी दवा लेने बाजार गया । इनके
पिता जी को यह समझ में आ गया की पानी पीने में समय लगाये बिना वह मेरी दवा लेने
बाजार चला गया ? ऐसा आज्ञापालन क्या कोई साधारण पुत्र कर सकता है ? ..... शेष अगले ब्लॉग में ।
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!