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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, एकादशी, शनिवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१५-
गत ब्लॉग से आगे….....जयदयाल गोयन्दका ने मानवमात्र को भगवतप्राप्ति कराने
के उदेश्य से जो कार्य किये उसे ध्यान में रखते ही वे कौन थे, यह प्रश्न गूँज जाता
है । बिना पूर्वजन्म के विशिष्ट संस्कार, दैवी कृपा या देवत्व के इस तरह के कार्य
कैसे सम्भव होता ? इस महामानव के जीवनवृत की कुछ घटनाये रहस्यात्मक है-
संवत २००८ (सन् १९५२) में रामनिवास जी सराफ के छाती में
तकलीफ हुई और रामनिवास जी को ज्योतिषी ने मारकेश बता रखा था । घर पर उनकी दादीजी
बीमार थी । रामनिवास जी सेठजी के पास गए की मेरे हार्ट की तकलीफ हो गयी है । घर पर
दादीजी भी बीमार है । मेरे को ज्योतिषी ने मारकेश बताया है, मुझे घबडाहट हो रही
है, मैं घर जाना चाहता हूँ । सेठजी ने पुछा की मारकेश में क्या होता है ।
रामनिवासजी ने बताया की शरीर जा भी सकता है और नहीं भी जा सकता है । सेठ जी ने कहा
की आपको ज्योतिषी ने दो बात कही किन्तु मैं एक बात कहता हूँ की तुम्हारा शरीर नहीं
जायेगा । आपने मेरी बात पर ध्यान दिया क्या ? रामनिवास जी ने कहा-हाँ सुन ली ।
सेठजी ने पुन: कहा की मेरा भविष्य की बात बोलने का स्वभाव नहीं है । आपके घबडाहट
थी इसलिए कह दी । रामनिवास जी का शरीर संवत २०४७ (सन् १९९७ ) में शान्त हुआ । ...... शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!