※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 10 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१५-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, एकादशी, शनिवार, वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१५-

 

गत ब्लॉग से आगे….....जयदयाल गोयन्दका ने मानवमात्र को भगवतप्राप्ति कराने के उदेश्य से जो कार्य किये उसे ध्यान में रखते ही वे कौन थे, यह प्रश्न गूँज जाता है । बिना पूर्वजन्म के विशिष्ट संस्कार, दैवी कृपा या देवत्व के इस तरह के कार्य कैसे सम्भव होता ? इस महामानव के जीवनवृत की कुछ घटनाये रहस्यात्मक है-

संवत २००८ (सन् १९५२) में रामनिवास जी सराफ के छाती में तकलीफ हुई और रामनिवास जी को ज्योतिषी ने मारकेश बता रखा था । घर पर उनकी दादीजी बीमार थी । रामनिवास जी सेठजी के पास गए की मेरे हार्ट की तकलीफ हो गयी है । घर पर दादीजी भी बीमार है । मेरे को ज्योतिषी ने मारकेश बताया है, मुझे घबडाहट हो रही है, मैं घर जाना चाहता हूँ । सेठजी ने पुछा की मारकेश में क्या होता है । रामनिवासजी ने बताया की शरीर जा भी सकता है और नहीं भी जा सकता है । सेठ जी ने कहा की आपको ज्योतिषी ने दो बात कही किन्तु मैं एक बात कहता हूँ की तुम्हारा शरीर नहीं जायेगा । आपने मेरी बात पर ध्यान दिया क्या ? रामनिवास जी ने कहा-हाँ सुन ली । सेठजी ने पुन: कहा की मेरा भविष्य की बात बोलने का स्वभाव नहीं है । आपके घबडाहट थी इसलिए कह दी । रामनिवास जी का शरीर संवत २०४७ (सन् १९९७ ) में शान्त हुआ । ...... शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!