※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 11 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१६-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१६-

 

गत ब्लॉग से आगे…....एक व्यक्ति कनखल में मरनासन्न पड़ा था । सेठ मोहनलाल जी पटवारी एवं कुछ और व्यक्तियों के साथ गएँ । वह व्यक्ति बड़ी प्रसन्नता से सेठजी से मिला । उसके बाद सेठजी की गोद में उसका शरीर शान्त हो गया । सेठजी बोले की मेरा आने का यही उददेश्य था । फिर मोहन लाल जी पटवारी के जिम्मे उसकी दाह-क्रिया की व्यवस्था का काम सौपा ।

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एक बार सेठजी के मित्र हनुमानबक्स जी को बहुत गहरा घाव हो गया । बहुत ज्यादा जलन हो रही थी । सेठजी हँसते हुए आये । हनुमानबक्स जी ने कहा की मेरे पीड़ा हो रही है एवं तुम्हे हँसी आ रही है । सेठजी बोले तो पीड़ा मेरे को दे दो । हनुमानबक्स जी ने कहा की ऐसे कैसे हो सकता है । सेठजी बोले अच्छा अब मेरी बात काटना मत, आधी पीड़ा मुझे दे दो । उनकी सम्मति मिलने पर सेठजी के शरीर में उसी स्थान पर आधा घाव हो गया । हनुमानजी बक्स का आधा घाव ठीक हो गया ।

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स्वामी रामसुखदासजी महाराज के सहपाठी साधू चिम्मनराम जी को सीरेकी (हलवा) बहुत शौक था । एक बार वटवृक्ष पर भिक्षा में सीर मिला, वे खाने लगे तो उन्हें एकदम फीका लगने लगा । उन्हें लगा की इसमें चीनी नही है । फिर मन में आई की सेठजी से सान्निध्य के कारण सीरा फीका लग रहा है, क्योकि स्वाद भोग सन्त से दूर भागते है, अत: थोड़ी दूर जाकर पाने लगे तो कुछ मीठा लगने लगा । काफी दूर जाने पर पूरा स्वाद आने लगा ।

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एक दिन ऋषिकेश में सांयकाल गंगाजी के तट पर सत्संग हो रहा था उस सत्संग में भवसागर से कैसे पार हो-इस विषय पर चर्चा हो रही थी । उसी समय कुछ स्त्रियाँ आयीं और बोली की हमारे साथ के लोग उस पार चले गए है, अब नाव बंद हो गयी है आप हमे उस पार भिजवा दें । सेठजी ने कहा की कोई इनके साथ जाकर नाववाले से मेरा नाम लेकर इन्हें उस पार भिजवा दे । महत्वपूर्ण चर्चा हो रही थी, कोई उठना नही चाहता था, अत: अन्त में सेठजी स्वयं उठे और उन्हें गंगा पार करने के लिए नाव में बैठाकर वापस आ गए । कुछ सत्संगी भाईयों ने कहा इन्थी महत्वपूर्ण बात भवसागर पार करने केकी चल रही थी, आप उन्हें गंगापार कराने चले गए । सेठजी बोले-मैं तो उन्हें भवसागर से ही पार करवाकर आ रहा हूँ । ...... शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!