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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१६-
गत ब्लॉग से आगे…....एक व्यक्ति कनखल में मरनासन्न पड़ा था । सेठ मोहनलाल
जी पटवारी एवं कुछ और व्यक्तियों के साथ गएँ । वह व्यक्ति बड़ी प्रसन्नता से सेठजी
से मिला । उसके बाद सेठजी की गोद में उसका शरीर शान्त हो गया । सेठजी बोले की मेरा
आने का यही उददेश्य था । फिर मोहन लाल जी पटवारी के जिम्मे उसकी दाह-क्रिया की
व्यवस्था का काम सौपा ।
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एक बार सेठजी के मित्र हनुमानबक्स जी को बहुत गहरा घाव हो
गया । बहुत ज्यादा जलन हो रही थी । सेठजी हँसते हुए आये । हनुमानबक्स जी ने कहा की
मेरे पीड़ा हो रही है एवं तुम्हे हँसी आ रही है । सेठजी बोले तो पीड़ा मेरे को दे दो
। हनुमानबक्स जी ने कहा की ऐसे कैसे हो सकता है । सेठजी बोले अच्छा अब मेरी बात
काटना मत, आधी पीड़ा मुझे दे दो । उनकी सम्मति मिलने पर सेठजी के शरीर में उसी
स्थान पर आधा घाव हो गया । हनुमानजी बक्स का आधा घाव ठीक हो गया ।
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स्वामी रामसुखदासजी महाराज के सहपाठी साधू चिम्मनराम जी को
सीरेकी (हलवा) बहुत शौक था । एक बार वटवृक्ष पर भिक्षा में सीर मिला, वे खाने लगे
तो उन्हें एकदम फीका लगने लगा । उन्हें लगा की इसमें चीनी नही है । फिर मन में आई
की सेठजी से सान्निध्य के कारण सीरा फीका लग रहा है, क्योकि स्वाद भोग सन्त से दूर
भागते है, अत: थोड़ी दूर जाकर पाने लगे तो कुछ मीठा लगने लगा । काफी दूर जाने पर
पूरा स्वाद आने लगा ।
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एक दिन ऋषिकेश में सांयकाल गंगाजी
के तट पर सत्संग हो रहा था उस सत्संग में भवसागर से कैसे पार हो-इस विषय पर चर्चा
हो रही थी । उसी समय कुछ स्त्रियाँ आयीं और बोली की हमारे साथ के लोग उस पार चले
गए है, अब नाव बंद हो गयी है आप हमे उस पार भिजवा दें । सेठजी ने कहा की कोई इनके
साथ जाकर नाववाले से मेरा नाम लेकर इन्हें उस पार भिजवा दे । महत्वपूर्ण चर्चा हो
रही थी, कोई उठना नही चाहता था, अत: अन्त में सेठजी स्वयं उठे और उन्हें गंगा पार
करने के लिए नाव में बैठाकर वापस आ गए । कुछ सत्संगी भाईयों ने कहा इन्थी
महत्वपूर्ण बात भवसागर पार करने केकी चल रही थी, आप उन्हें गंगापार कराने चले गए ।
सेठजी बोले-मैं तो उन्हें भवसागर से ही पार करवाकर आ रहा हूँ । ...... शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!