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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी, मंगलवार,
वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१८-
गत ब्लॉग से आगे….....एक पंजाबी कम्पाउनडर की नामजप तथा जयदयालजी गोयन्दका
में काफी श्रद्धा थी । एक बार वह काफी बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुआ । उसे
यमदूत दीखने लगे, उसने तुरन्त सेठजी को याद किया । सेठजी आये और अपनी लाठी फटकी,
यमदूत भाग गये । सेठजी बोले-घबराओं मत, खूब भजन करो । अभी तेरी उमर बाकि है । कुछ
पूछना हो तो रामसुख जी से पूछ लेना । उस समय सेठजी का शरीर शान्त हो चूका था । वह
स्वस्थ्य होकर काफी वर्षों तक भजन में लीन रहा ।
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एक बार सेठजी वृन्दावन में साधुओं की एक सभा में गये ।
उन्हें देखकर सभी लोग खड़े हो गए । सेठजी ने हाथजोड़ कर कहा-मैं एक साधारण वैश्य
बालक हूँ । आप लोग खड़े हो गए यह मेरे लिए एक लज्जा की बात है । उड़िया बाबा ने
कहा-आप भले ही अपने को साधारण वैश्य माने या कुछ भी माने, किन्तु आपके यहाँ पैर
रखते ही यहाँ का वातावरण एकदम बदल जाता है ।
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एक बार चक्रधरपुर में ५-६ व्यक्तियों का भोजन बना । ३०-३५
व्यक्ति भोजन करने वाले हो गए । सेठजी ने भोजन पात्र को कपडे से ढक लिया और स्वयं
उसमे से भोजन निकाल निकालकर सबको परोसने के लिए देने लगे । जब सबने भोजन कर लिया
तब सेठजी वहां से हट गये । भोजन कम नहीं पड़ा ।
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जिस समय श्रीलाल बहादुर शास्त्री
विभाग विहीन मंत्री थे, एक बार गीताभवन में अपने परिवार समेत आये थे । सेठजी ने
उनके आतिथ्य का काम गोपाल जी मोहता और पूनम जी कोठारी के जिम्मे लगाया था । बाद
में जब वे सेठजी से मिले तो बातचीत के सिलसिले में सेठजी ने उनसे कहा की अब नेहरु
के बाद में आपका ही नम्बर है । नेहरु जी के बाद वे ही प्रधानमंत्री बने । ...... शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!