※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 13 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१८-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी, मंगलवार, वि० स० २०७१


गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-१८-

 

गत ब्लॉग से आगे….....एक पंजाबी कम्पाउनडर की नामजप तथा जयदयालजी गोयन्दका में काफी श्रद्धा थी । एक बार वह काफी बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुआ । उसे यमदूत दीखने लगे, उसने तुरन्त सेठजी को याद किया । सेठजी आये और अपनी लाठी फटकी, यमदूत भाग गये । सेठजी बोले-घबराओं मत, खूब भजन करो । अभी तेरी उमर बाकि है । कुछ पूछना हो तो रामसुख जी से पूछ लेना । उस समय सेठजी का शरीर शान्त हो चूका था । वह स्वस्थ्य होकर काफी वर्षों तक भजन में लीन रहा । 

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एक बार सेठजी वृन्दावन में साधुओं की एक सभा में गये । उन्हें देखकर सभी लोग खड़े हो गए । सेठजी ने हाथजोड़ कर कहा-मैं एक साधारण वैश्य बालक हूँ । आप लोग खड़े हो गए यह मेरे लिए एक लज्जा की बात है । उड़िया बाबा ने कहा-आप भले ही अपने को साधारण वैश्य माने या कुछ भी माने, किन्तु आपके यहाँ पैर रखते ही यहाँ का वातावरण एकदम बदल जाता है ।

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एक बार चक्रधरपुर में ५-६ व्यक्तियों का भोजन बना । ३०-३५ व्यक्ति भोजन करने वाले हो गए । सेठजी ने भोजन पात्र को कपडे से ढक लिया और स्वयं उसमे से भोजन निकाल निकालकर सबको परोसने के लिए देने लगे । जब सबने भोजन कर लिया तब सेठजी वहां से हट गये । भोजन कम नहीं पड़ा ।

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जिस समय श्रीलाल बहादुर शास्त्री विभाग विहीन मंत्री थे, एक बार गीताभवन में अपने परिवार समेत आये थे । सेठजी ने उनके आतिथ्य का काम गोपाल जी मोहता और पूनम जी कोठारी के जिम्मे लगाया था । बाद में जब वे सेठजी से मिले तो बातचीत के सिलसिले में सेठजी ने उनसे कहा की अब नेहरु के बाद में आपका ही नम्बर है । नेहरु जी के बाद वे ही प्रधानमंत्री बने । ...... शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!