※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 15 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२०-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, प्रतिपदा,  गुरुवार, वि० स० २०७१

 

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२०-

 

गत ब्लॉग से आगे….....माणकजी राठी कोलकाता में सावरियां जी के मन्दिर में दर्शन करते जाते, वहां प्राय: उनके जूते खो जाते थे । एक बार वे नया जूता पहन कर गए आर भगवान् से प्रार्थना की की आज नये जूते हैं, आप रक्षा करना । बाहर जाने पर उन्हें जूतों के पास सेठजी दीखायी दिए और बोले-आपने हमारे जिम्मे यही काम लगाया ।

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एक बार स्वामी रामसुखजी एवं मोहनलाल जी पटवारी सेठजी के पास जा रहे थे । मार्ग में चर्चा के दौरान कोई गुत्थी उलझ गयी । यह तय हुआ की सेठजी से चलकर पूछेंगे । जब सेठजी के पास पहुचे तो सेठजी प्रवचन के लिए बैठ चुके थे । प्रवचन में समस्या का समाधान बिना पूछे ही हो गया ।

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 प्रवचन  लाल चन्द जी खरकिया काशीनिवास करना चाहते थे । सेठजी ने कहा की शास्त्रों में आता है की काशी में मरने से मुक्ति होती है किन्तु ऐसा किसी का समाचार नहीं आया । गीताप्रेस भगवान् का है, यह मानने से मुक्ति है, यह बात मैं बोलता हूँ । फिर कहा हम लोग वैश्य है, हम कमाकर खाते है, क्षेत्र में नहीं खाते ।काशी में तो भगवान् शंकर ने क्षेत्र खोल रखा है ।

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सेठजी के परलोक गमन करने पर पण्डित हरीप्रसाद जी ने पंडित ज्येष्ठरामजी से जाकर बताया की सेठजी शान्त हो गए है ।पंडित जी ने उत्तर दिया की सेठजी अशान्त कब थे ? हरिप्रसादजी ने थोडा सुधार करके बताया की, सेठजी ने शरीर छोड़ दिया है । इस पर प० ज्येष्ठराम जी ने कहा की सेठजी शरीर में कब थे अर्थात वे तो सभी जगह थे । इस तथ्य को कई बार लोगों ने अनुभव किया की सेठजी का शरीर अहि और रहता था और वे अपने सत्संगी भाईयों के लिए कहीं और देखे जाते थे । एक बार गोरखपुर में मोहनलाल जी पटवारी की हड्डी प्रथम ताल से नीचे गिरने पर टूट गयी । एक महिला ने लोगों को बताया कि सेठजी प्रेस के तरफ भागते हुए पाए गए है देखो क्या बात है ? पता करने पर इस दुर्घटना का पता लगा । जयदयाल जी गोयन्दका उस समय शरीर से गोरखपुर में थे ही नहीं । ...... शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!