※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 16 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२१-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, द्वितीया, शुक्रवार,  वि० स० २०७१

 

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२१-

 

गत ब्लॉग से आगे….....एक बार सेठजी के विद्यागुरु ने सेठजी से चमत्कार दीखाने को कहा, सेठजी ने मना कर दिया, क्योकि सेठजी कभी चमत्कार दीखाना नहीं चाहते थे तथा इसे अच्छा भी नहीं समझते थे । हठ करने पर कहा की बोलिए क्या दीखाऊ । एक हँडिया पड़ी थी । उन्होंने कहाँ की यह बिना उठाये उठ जाय । हँडिया उठ गयी । किन्तु मांगने वाले यह मामूली माँग करके चूक गये । सेठजी ने कहा की माँगा भी तो क्या माँगा ?

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घनश्याम दास जी जालान ने अन्त समय में कहा की आप लोग सेठ जी को साधारण आदमी न समझना, यह तो साक्षात् चतुर्भुज विष्णु भगवान् है । सेठजी बोले तुमने तो मेरी बात मानी नहीं अन्यथा गीताप्रेस की स्थिती बहुत ऊंची होनी चाहिये थी ; किन्तु गीताप्रेस की सेवा का प्रभाव मालूम होता है की अन्तकाल में तुम्हारी अचानक ऐसी स्थिति हो गयी ।

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एक बार सेठ जी देवदत्त जी सराफ के यहाँ गए । उनकी स्त्री ने कहा का प्रभु का विग्रह तो श्याम वर्ण का सुना है, मेरे ठाकुर जी का (विग्रह) तो गौरवर्ण के है । सेठजी ने कहा की तू क्या चाहती है । उसने कहा की मैं तो श्यामवर्ण ही चाहती हूँ । तत्काल विग्रह श्यामवर्ण का दीखने लगा ।

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एक दिन एकादशी को सेठजी ने सीरा पूड़ी कितना-कितना बनाना है बता दिया । माँजी ने कुछ कम बनवाया । वटवृक्ष के नीचे सन्त लोग जीमने बैठे तो सीर समाप्त हो गया । सेठजी बोले सबसे (सत्संगी भाईयों से) थोड़ा-थोडा माँग लाओं और बोले चिन्ना-सा (थोडा सा) मुझे दो । सेठजी दो बार जरा-जरा लेकर फांके । सब सन्तों के पेट भर गए । मंगाई हुई रसोई वापिस करनी पड़ी । ...... शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!