※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 17 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, तृतीया, शनिवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२२-

 

गत ब्लॉग से आगे…....सेठजी कहीं गए हुए थे । वापसी में दुसरे रास्ते चल दिए । साथवालों ने कहा हम लोग इस रास्ते से नही गए थे, किन्तु सेठजी ने कोई उत्तर नहीं दिया । रास्ते में एक व्यक्ति मरनासन्न पड़ा था । उसको विदा करके वापिस आये ।

*      *      *      *

भगवानदेई सावन के सोमवार को शंकरजीकी पूजा नही करती थी । सेठजी ने पूछा तो बताया की उनके परिवार में सावन के सोमवार को कई मौते हुई है, इसलिए हमलोग सावन के सोमवार को शंकर जी की पूजा नही करते । सेठजी ने कहा-पूजा करों आज के बाद तुम्हारे परिवार में सावन के सोमवार को कोई नही मरेगा ।

*      *      *      *

नारायनी बाई की माँ ने एक बार सेठजी से कहा था की मेरे मरते समय आप पास में रहियेगा । अन्त समय में उन्हें लगभग तीन माह पूर्व लकवा हो गया । वे स्वत उठने बैठने में असमर्थ हो गयीं । मृत्यु के समय वे उठकर बैठ गयी एवं दोनों हाथ जोड़े तथा बताया  सेठजी आ गये, भगवान् आ गए ।

*      *      *      *

एक बार परम श्रद्धेय गणेशदास जी भक्तमाली को पू० पंडित गया प्रसाद जी ने बताया की श्री जयदयाल गोयन्दका एवं श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्धार कोस अमान्य वैश्य मत समझना । ये भगवदअवतारी पुरुष है ।   

*      *      *      *

एक बार गीताभवन में सावित्री बाई की फुफस को अपेंडिक्स का तेज दर्द हो गया । पहले भी कई बार दर्द होता था, डाक्टर ने आपरेशन बता रखा था । रात्रि में सेठजी तीब्डी से वापिस आये तब सावित्री बाई ने उन्हें बताया । सेठजी उनके साथ आये और संचर पाक वटी माँगी । उन्हें बताया गया की कई गोली दे दी कोई लाभ नहीं हुआ । सेठजी ने अपने हाथ से १-१ गोली अपने हाथ से दी । जीवन में वह दर्द फिर नही उठा ।...... शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!