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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, तृतीया, शनिवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-कुछ रहस्यात्मक प्रसंग-२२-
गत ब्लॉग से आगे…....सेठजी कहीं गए हुए थे । वापसी में
दुसरे रास्ते चल दिए । साथवालों ने कहा हम लोग इस रास्ते से नही गए थे, किन्तु
सेठजी ने कोई उत्तर नहीं दिया । रास्ते में एक व्यक्ति मरनासन्न पड़ा था । उसको
विदा करके वापिस आये ।
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भगवानदेई सावन के सोमवार को
शंकरजीकी पूजा नही करती थी । सेठजी ने पूछा तो बताया की उनके परिवार में सावन के
सोमवार को कई मौते हुई है, इसलिए हमलोग सावन के सोमवार को शंकर जी की पूजा नही
करते । सेठजी ने कहा-पूजा करों आज के बाद तुम्हारे परिवार में सावन के सोमवार को
कोई नही मरेगा ।
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नारायनी बाई की माँ ने एक बार सेठजी
से कहा था की मेरे मरते समय आप पास में रहियेगा । अन्त समय में उन्हें लगभग तीन
माह पूर्व लकवा हो गया । वे स्वत उठने बैठने में असमर्थ हो गयीं । मृत्यु के समय
वे उठकर बैठ गयी एवं दोनों हाथ जोड़े तथा बताया सेठजी आ गये, भगवान् आ गए ।
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एक बार परम श्रद्धेय गणेशदास जी
भक्तमाली को पू० पंडित गया प्रसाद जी ने बताया की श्री जयदयाल गोयन्दका एवं श्री
हनुमानप्रसाद जी पोद्धार कोस अमान्य वैश्य मत समझना । ये भगवदअवतारी पुरुष है ।
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एक बार गीताभवन में सावित्री बाई
की फुफस को अपेंडिक्स का तेज दर्द हो गया । पहले भी कई बार दर्द होता था, डाक्टर
ने आपरेशन बता रखा था । रात्रि में सेठजी तीब्डी से वापिस आये तब सावित्री बाई ने
उन्हें बताया । सेठजी उनके साथ आये और संचर पाक वटी माँगी । उन्हें बताया गया की
कई गोली दे दी कोई लाभ नहीं हुआ । सेठजी ने अपने हाथ से १-१ गोली अपने हाथ से दी ।
जीवन में वह दर्द फिर नही उठा ।...... शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!