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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, चतुर्थी, रविवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२३-
गत ब्लॉग से आगे….... हनुमानबक्सजी गोयन्दका के परम
मित्र थे । वे सेठ जी से आयु में लगभग दो वर्ष बड़े थे । सेठजी उनको अपनी गुह्य से गुह्य बात बता देते थे, पर
उन्होंने इन्हें वे सभी बाते गुह्य रखने का कड़ाई से आदेश दे रखा था, फिर भी
कभी-कभी वे किसी-किसी बात को गुह्य बात बता देते थे ।
सेठजी ने उन्हें अपनी ज्ञान
की प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ भूमिका के विषय में बताया । अपनी इस स्थिति को
भी बताया की ज्ञान की चतुर्थ भूमिका में स्थिति हो गई है, भगवान् के दर्शनों की
बात भी बतायी । इससे हनुमानबक्स जी गोयन्दका के मन पर बड़ा प्रभाव हुआ, वे सन्यास
लेने का आग्रह करने लगे । इनका प्रबल आग्रह देखकर सेठजी ने कहा की चार-छ: महीने यहाँ
निरन्तर भजन स्मरण करके अपनी दृढ स्थिति कर लेनी चाहिये । इससे सन्यास लेने में
सहायता मिलेगी, अन्यथा फिर गृहस्थी में आना हो सकता है ।
चार महीने पूरे होने पर
फिर उन्होंने संन्यास लेने का आग्रह किया । तब सेठजी ने कहा की तुम्हारे भविष्य की
बातों की स्फुरणा मेरे मन में हो रही है, तुम्हारा संन्यास निभेगा नहीं, तुम्हारा
वैराग्य स्थायी नही है, परन्तु उनका आग्रह बना रहा । सेठजी ने कहा की मैं तुम्हारे
साथ चलने का वकाहं दे चुका हूँ और तुम कहोगे तो मैं चलूँगा, पर तुम्हे अभी भोग
भोगने अनिवार्य है । तुम्हे गृहस्थी में आना पड़ेगा, मैं लौटूंगा नही । मैं यदि
सन्यासी बना तो कानों से बहरा, मुहँ से गूँगा और पैरों से पंगु सन्यासी बनुगा ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!