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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, पन्चमी, सोमवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२४-
गत ब्लॉग से आगे….... मेरे मन में तुम्हारे पूर्वजन्म की
बाते स्फुरित हो रही है । लगभग दो हज़ार वर्ष पहले तुम राजा थे और मैं तुम्हारा
मंत्री था । उस समय भी हम दोनों ने राज्य छोड़कर संन्यास ग्रहण किया था । संन्यास
लेने के बाद बहुत लोग सत्संग के लिए हमारे पास आते थे । वृक्ष के नीचे सत्संग होता
था । कुछ समय बाद मेरा शरीर छुट गया, तुम अकेले रह गए ।
लोग तुम्हारा सम्मान करते
थे । मेरा भी सम्मान होता था, परन्तु मैं उसे मन से स्वीकार नही करता था । मेरी
मृत्यु के पश्चात तुमने सम्मान स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया । उस संन्यासआश्रम
में गद्दे, तकिये, बढ़िया खान-पान भोगने लगे । जिससे तुम्हारी बड़ी हानि हुई, पतन हो
गया । समय पर मृत्यु हो गयी । मृत्यु के बाद इसके पहले तुम्हे मनुष्य जन्म नही
मिला; तुम पशु, पक्षी आदि योनियों में भ्रमण करते रहे, परन्तु मैं इतने दिन ऊपर के
लोकों में रहा ।
अब दैवयोग से तुम्हे मनुष्यजन्म मिला है और मेरा भी आना हुआ है ।
यदि अब तुम हठ करोगे तो वचनबद्ध होने से मैं तुम्हारे साथ सन्यास ग्रहण क्र लूँगा
पर निश्चय मानों की तुम्हे गृहस्थी में आना पड़ेगा और मैं लौटूंगा नही । मेरा
तुम्हारा सँग छुट जायेगा । इस प्रकार बहुत देर तक विचार करने पर अन्त में संन्यास
लेने का विचार स्थगित कर दिया । कई बार सारी रात भगवतचर्चा करते बीत जाती, फिर भी
बाते समाप्त नहीं होती ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!