※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 19 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, पन्चमी, सोमवार,  वि० स० २०७१

 
गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२४-

 

गत ब्लॉग से आगे….... मेरे मन में तुम्हारे पूर्वजन्म की बाते स्फुरित हो रही है । लगभग दो हज़ार वर्ष पहले तुम राजा थे और मैं तुम्हारा मंत्री था । उस समय भी हम दोनों ने राज्य छोड़कर संन्यास ग्रहण किया था । संन्यास लेने के बाद बहुत लोग सत्संग के लिए हमारे पास आते थे । वृक्ष के नीचे सत्संग होता था । कुछ समय बाद मेरा शरीर छुट गया, तुम अकेले रह गए ।
 
लोग तुम्हारा सम्मान करते थे । मेरा भी सम्मान होता था, परन्तु मैं उसे मन से स्वीकार नही करता था । मेरी मृत्यु के पश्चात तुमने सम्मान स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया । उस संन्यासआश्रम में गद्दे, तकिये, बढ़िया खान-पान भोगने लगे । जिससे तुम्हारी बड़ी हानि हुई, पतन हो गया । समय पर मृत्यु हो गयी । मृत्यु के बाद इसके पहले तुम्हे मनुष्य जन्म नही मिला; तुम पशु, पक्षी आदि योनियों में भ्रमण करते रहे, परन्तु मैं इतने दिन ऊपर के लोकों में रहा ।
 
अब दैवयोग से तुम्हे मनुष्यजन्म मिला है और मेरा भी आना हुआ है । यदि अब तुम हठ करोगे तो वचनबद्ध होने से मैं तुम्हारे साथ सन्यास ग्रहण क्र लूँगा पर निश्चय मानों की तुम्हे गृहस्थी में आना पड़ेगा और मैं लौटूंगा नही । मेरा तुम्हारा सँग छुट जायेगा । इस प्रकार बहुत देर तक विचार करने पर अन्त में संन्यास लेने का विचार स्थगित कर दिया । कई बार सारी रात भगवतचर्चा करते बीत जाती, फिर भी बाते समाप्त नहीं होती ।.. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!