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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, षष्ठी, मंगलवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२५-
गत ब्लॉग से आगे….... एक बार सेठजी हनुमानजी का चौबारा
देखने चले गए, जिसका निर्माण हो रहा था, ट्रस्ट की मीटिंग होनी थी, ट्रस्टी लोग इक्कठे
हुए थे । सेठ जी को वहां समय लगा । घनश्याम
दास जी जालान ने सेठजी से कहाँ-यहाँ सब ट्रस्टी बैठे प्रतीक्षा कर रहे है, आप
हनुमानजी बक्श के यहाँ चले गये । सेठजी ने कहा-आप लोगों से मेरा मिलना हनुमान के
कारण ही हुआ है ।आप को उसका ऋण मानना चाहिये जिसके कारण मुझे आना पड़ा ।
शान्तनुबिहारी जी दिवेदी ने सन्यास
ग्रहण करने के पश्चात स्वामी अखंडानन्द जी के नाम से विख्यात हुए । उन्होंने सेठजी
के पूर्व जन्म की बात सुनी तो उनको विश्वास नही हुआ । एक दिन उन्होंने सेठजी से
एकान्त में पुछा की आपके पूर्व जन्म के सम्बन्ध में आपके नाम की कई बाते सुनी जाती
है । क्या आपने कभी पूर्वजन्म की बातें किसी को कही है । सेठजी ने कहाँ बीस-तीस
वर्ष पूर्व कुछ ऐसी बाते कही थी । उन्होंने पुछा आपको पूर्व जन्म का स्मरण है,
सेठजी ने हाँ में उत्तर दिया । विशेष बात कही की आप चाहे तो आप भी अपने पूर्व जन्म
की बात जान सकते है । उन्होंने पुछा कैसे ? सेठजी ने उत्तर दिया ‘अपरिग्रहस्थैर्ये
जन्मकथन्तासम्बोधः’ इस योग सूत्र के अनुसार संयम कीजिये । वासना रहित प्रज्ञा में सत्य
का अर्विभाव होता है, ऐसा कभी धारणा की थी तब मुझे पूर्वजन्म की स्फुरणा हुई थी ।
पर सेठजी इन बातों की जानकारी को आदर नही देते थे ।
अटपटा मन्त्र-
अडंग बडंग स्वाहा- ध्यान एवं नाम
जप के समय विक्षेप आदि दोष आते तो ‘अडंग बडंग स्वाहा’ यह इनका एक मूल
मन्त्र था, इससे उनको बहुत सहायता मिली ।
जब कभी काम, क्रोध, लोभ आदि विकार
असर करते तो हे नाथ ! हे नाथ ! ऐसा कहने से उनके विकार हट जाते थे । इसलिए साधकों
को सलाह देते जब कभी विकार तंग करे तो हे नाथ ! हे नाथ ! ऐसी पुकार लगानी चाहिये ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!