※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 20 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२५-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, षष्ठी, मंगलवार,  वि० स० २०७१

 
गीताप्रेस के संस्थापक-पूर्व जन्म का प्रसंग-२५-

 

गत ब्लॉग से आगे….... एक बार सेठजी हनुमानजी का चौबारा देखने चले गए, जिसका निर्माण हो रहा था, ट्रस्ट की मीटिंग होनी थी, ट्रस्टी लोग इक्कठे हुए थे । सेठ जी को वहां समय लगा । घनश्याम दास जी जालान ने सेठजी से कहाँ-यहाँ सब ट्रस्टी बैठे प्रतीक्षा कर रहे है, आप हनुमानजी बक्श के यहाँ चले गये । सेठजी ने कहा-आप लोगों से मेरा मिलना हनुमान के कारण ही हुआ है ।आप को उसका ऋण मानना चाहिये जिसके कारण मुझे आना पड़ा ।

शान्तनुबिहारी जी दिवेदी ने सन्यास ग्रहण करने के पश्चात स्वामी अखंडानन्द जी के नाम से विख्यात हुए । उन्होंने सेठजी के पूर्व जन्म की बात सुनी तो उनको विश्वास नही हुआ । एक दिन उन्होंने सेठजी से एकान्त में पुछा की आपके पूर्व जन्म के सम्बन्ध में आपके नाम की कई बाते सुनी जाती है । क्या आपने कभी पूर्वजन्म की बातें किसी को कही है । सेठजी ने कहाँ बीस-तीस वर्ष पूर्व कुछ ऐसी बाते कही थी । उन्होंने पुछा आपको पूर्व जन्म का स्मरण है, सेठजी ने हाँ में उत्तर दिया । विशेष बात कही की आप चाहे तो आप भी अपने पूर्व जन्म की बात जान सकते है । उन्होंने पुछा कैसे ? सेठजी ने उत्तर दिया ‘अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासम्बोधः’ इस योग सूत्र के अनुसार संयम कीजिये । वासना रहित प्रज्ञा में सत्य का अर्विभाव होता है, ऐसा कभी धारणा की थी तब मुझे पूर्वजन्म की स्फुरणा हुई थी । पर सेठजी इन बातों की जानकारी को आदर नही देते थे ।

अटपटा मन्त्र-

अडंग बडंग स्वाहा- ध्यान एवं नाम जप के समय विक्षेप आदि दोष आते तो ‘अडंग बडंग स्वाहा’ यह इनका एक मूल मन्त्र था, इससे उनको बहुत सहायता मिली ।

जब कभी काम, क्रोध, लोभ आदि विकार असर करते तो हे नाथ ! हे नाथ ! ऐसा कहने से उनके विकार हट जाते थे । इसलिए साधकों को सलाह देते जब कभी विकार तंग करे तो हे नाथ ! हे नाथ ! ऐसी पुकार लगानी चाहिये ।.. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!