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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, सप्तमी, बुधवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-२६-
गत ब्लॉग से आगे…....
१-श्री घनश्यामदास जी जालान-
इस महदनुष्ठान में उन्हें कई साथी
मिले; परन्तु तीन ऐसे मिले जो सर्वथा इस अनुष्ठान के अनुरूप ही थे-सबसे विरल साथी,
सखा और सचिव थे घनश्यामदासजी ।
आत्मसमर्पण की प्रतिमूर्ति, ‘सर्वधर्मान परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज’ का उदाहरण । समर्पण की जो सुषमा घनश्याम जी में देखने को मिली,
वह आज के हिसाबी-किताबी दुनिया में कहाँ मिलती है ?
वे अपना जबाब आप ही थे-एक,
अद्वितीय, अनन्य । गोयन्दका जी में उन्होंने अपना ‘गतिभर्ता प्रभु: साक्षी निवास:
शरणम् सुहृद’ सब कुछ पा लिया । सोते-जागते ‘पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु: प्रिय:
प्रियाया:’ सेठजी ने उन्हें ‘अपना’ लिया । गोयन्दकाजी की सारी कर्मशक्ति घनश्यामजी
में स्वत: स्फूर्त हुई अपनी पूरी सजगता और तेजस्विता के साथ ।
उन्होंने अपने
तन-मन-धन को कभी भी अपना नही माना, सब कुछ ‘त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव
समर्पये’ । समर्पण की मनोहारी मूर्ती ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!