※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 22 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-२७-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, अष्टमी, गुरुवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-२७-

 

गीताप्रेस के इतिहास में ही क्यों, गोयन्दका की समस्त प्रवर्तियों एवं अनुष्ठानों तथा संकल्पों को रूपायित करने में घनश्यामदास जी का नाम स्वर्णअक्षरों में लिखा मिलेगा । आत्मनिवेदन का सौन्दर्य एवं आनन्द क्या है, कैसा होता है कोई घनश्याम जी से जाने । और क्या आश्चर्य की ऋषिकेश स्वर्गाश्रम के गीताभवन में घनश्यामजी ने गंगातट पर गोयन्दका जी की गोद में ही अपना शरीर छोड़ा । ए मरण ! तेरा कितना अनुपम पावन श्रृंगार उस दिन हुआ था । जिन मृत्यु पर मनुष्यों की कौन कहे देवता भी तरसते होंगे, ईर्ष्या करते होंगे । उनकी मृत्यु कई लोगों ने सामने पहाड़ी पर आतिशबाजी जैसा बिजली का प्रकाश एवं नगाड़ों के बजने के स्वर का अनुभव किया ।

एक बार सेठजी कई लोगों के बीच बैठकर चर्चा कर रहे थे की उनका शरीर शान्त होने के बाद कौन क्या-क्या काम करेगा । घनश्यामदास जी का नंबर आने पर उन्होंने कहा की जिसे रहना हो वह सोचे । मुझे तो आपके बाद रहना ही नही है ।

घनश्याम जी प्रेस के कर्मचारियों के सच्चे शुभचिन्तक थे । उनके अभाव में वे अपने को अनाथ मानने लगे । गोयन्दकाजी अनायास किसी को खोजना या पुकारना हो तो ‘घणसाम’ को पुकार बैठते । बाद में होश आता की घणसाम तो ‘घनश्याम’ में सदा के लिए जा मिला है । घनश्याम जी के जाने के बाद सेठजी का जैसे परम अन्तरंग अनन्य सखा-सचिव-सेवक चला गया । उस आभाव की पूर्ती कोई न कर सका ।.. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!