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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, त्रयोदशी, सोमवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३१-
एक बार सेठजी प्रवचन में जा रहे थे
। स्वामीजी महाराज को पहले से पता नहीं था वे भिक्षा करने बैठे हुए थे । महाराज जी
को पता लगा की सेठजी प्रवचन के लये जा रहे है तो महाराज जी आचमन करके यह कह कर उठ
गए की भिक्षा के लिए सत्संग क्या छोड़ना । उस समय चौबीस घंटे में एक बार भिक्षा
लिया करते थे ।
एक बार स्वामीजी गीताप्रेस,
गोरखपुर आये हुए थे । प्रात: ३ बजे शौच-स्नान के लिए नदी की और जाने के लिए गेट पर
आये तो गेट बन्द मिला, गेट खुलने का समय प्रात: ४ बजे था । दिन में उन्होंने सेठजी
से पुछा की साधू को फाटक खोलने के लिए कहना चाहिये या नही । सेठजी ने कोई उत्तर
नहीं दिया तथा फाटक प्रात;काल जल्दी खोलने का आदेश दे दिया । स्वामीजी ने कहा-आपने
मुझे तो उत्तर नही दिया और फाटक खुलवा दिया । सेठजी बोले की पहले हम तो अपने
कर्तव्य का पालन करण तब तो अपना कर्तव्य बताये ।
एक बार स्वामी जी ने एकान्तवास का
विचार किया । सेठजी ने कहा-स्वामीजी ! आप एकान्त में जाकर अपनी मुक्ति कर लेंगे ।
अकेले भोजन करना बढ़िया है क्या ? स्वामीजी बोले-मैं बहुत सुनाता हूँ; किन्तु ये
लोग मानते ही नही है । सेठजी ने कहा-मैं भी तो सुनाता हूँ । अपना काम सुनाना है ।
हमलोगों को अपना काम करना चाहिये । स्वामीजी ने एकान्तवास का विचार छोड़ दिया । ….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!