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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३०-
३. स्वामी श्रीरामसुखदास जी
महाराज-
स्वामी रामसुखदास जी को सेठजी का
वैराग्य-तत्व मिला । कई बातों में, आचार में, प्रचार में, उच्चार में, प्रवचन में
स्वामी रामसुखदास जी सेठजी की ‘कार्बन कापी’ या ‘प्रतिछबी’ प्रतीत होते है- वैसे
ही बैठना, वैसे ही ‘नारायण, नारयण, नारायण’ की नामधुन, गीताकी गहराई में उतरने की
दक्षता, उसकी बारीकियों का वैसा ही सूक्ष्म विश्लेषण एवं उद्घाटन-लगता है की सेठजी
ने अपना सारा ज्ञान घोलकर स्वामी जी को पिला दिया था । कुछ प्रसंग इस प्रकार है-
एक बार स्वामीजी महाराज को लगभग २४
वर्ष की आयु में एक गाँव में स्वप्न में जयदयाल जी गोयन्दका से सम्पर्क करने एवं
भक्ति का प्रचार करने का संकेत हुआ । गाँव का नाम निमाज था । स्वामीजी का सेठजी से
प्रथम मिलन ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम, चुरू में हुआ था ।
एक बार तीर्थयात्रा-ट्रेन में
स्वामीजी, नारायणजी सरावगी वगैराह कई लोग बैठे थे । सेठजी ने स्वामीजी की तरफ
संकेत करते हुए कहा की आप मानते तो नहीं है किन्तु ये लोग आपही के शिष्य है ।
स्वामी जी ने सेठजी की तरफ इशारा करते हुए कहा की आप मानते तो नही है किन्तु मैं
आपका ही शिष्य हूँ ।
सेठजी ने स्वामी जी से सत्संग
कराने को कहा-स्वामी जी ने कहा-मैंने बहुत सप्ताह, कीर्तन, प्रवचन किये है । उनसे
धापकर अब साधन करने आपके पास आया हूँ । सेठजी ने कहा-सत्संग कराना भी साधन है ।
स्वामी जी बोले तो ठीक है ।
एक बार ग्रहण के समय सत्संग हो रहा
था । सेठजी ने स्वामीजी से कहा आप सत्संग चलाये । स्वामीजी प्रवचन देते रहे ।
ग्रहण शुद्ध होने पर प्राय: सभी लोग धीरे-धीरे उठ गए । केवल प्रवचन करने वाले
स्वामीजी तथा सुननेवाली द्रौपदी बाई जालान रह गयी । रसोई तैयार होने पर सेठजी ने
कहा-पहले सन्तों को जिमाओं । स्वामीजी की खोज हुई तब पता चला, अभी सत्संग करवा रहे
है । तब सेठजी उन्हें बुलाकर लाये ।
एक बार सेठजी से स्वामीजी ने कहा
की आप इतनी बाते कहते है, हमलोग इसके अधिकारी नहीं है । सेठजी बोले मेरी बात आकाश
में रहेगी । जब कोई अधिकारी मिलेगा उसे प्राप्त हो जाएगी ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!