※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 25 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३०-


 

।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, द्वादशी, रविवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३०-

 

३. स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज-

स्वामी रामसुखदास जी को सेठजी का वैराग्य-तत्व मिला । कई बातों में, आचार में, प्रचार में, उच्चार में, प्रवचन में स्वामी रामसुखदास जी सेठजी की ‘कार्बन कापी’ या ‘प्रतिछबी’ प्रतीत होते है- वैसे ही बैठना, वैसे ही ‘नारायण, नारयण, नारायण’ की नामधुन, गीताकी गहराई में उतरने की दक्षता, उसकी बारीकियों का वैसा ही सूक्ष्म विश्लेषण एवं उद्घाटन-लगता है की सेठजी ने अपना सारा ज्ञान घोलकर स्वामी जी को पिला दिया था । कुछ प्रसंग इस प्रकार है-

एक बार स्वामीजी महाराज को लगभग २४ वर्ष की आयु में एक गाँव में स्वप्न में जयदयाल जी गोयन्दका से सम्पर्क करने एवं भक्ति का प्रचार करने का संकेत हुआ । गाँव का नाम निमाज था । स्वामीजी का सेठजी से प्रथम मिलन ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम, चुरू में हुआ था ।

एक बार तीर्थयात्रा-ट्रेन में स्वामीजी, नारायणजी सरावगी वगैराह कई लोग बैठे थे । सेठजी ने स्वामीजी की तरफ संकेत करते हुए कहा की आप मानते तो नहीं है किन्तु ये लोग आपही के शिष्य है । स्वामी जी ने सेठजी की तरफ इशारा करते हुए कहा की आप मानते तो नही है किन्तु मैं आपका ही शिष्य हूँ ।

सेठजी ने स्वामी जी से सत्संग कराने को कहा-स्वामी जी ने कहा-मैंने बहुत सप्ताह, कीर्तन, प्रवचन किये है । उनसे धापकर अब साधन करने आपके पास आया हूँ । सेठजी ने कहा-सत्संग कराना भी साधन है । स्वामी जी बोले तो ठीक है ।

एक बार ग्रहण के समय सत्संग हो रहा था । सेठजी ने स्वामीजी से कहा आप सत्संग चलाये । स्वामीजी प्रवचन देते रहे । ग्रहण शुद्ध होने पर प्राय: सभी लोग धीरे-धीरे उठ गए । केवल प्रवचन करने वाले स्वामीजी तथा सुननेवाली द्रौपदी बाई जालान रह गयी । रसोई तैयार होने पर सेठजी ने कहा-पहले सन्तों को जिमाओं । स्वामीजी की खोज हुई तब पता चला, अभी सत्संग करवा रहे है । तब सेठजी उन्हें बुलाकर लाये ।

एक बार सेठजी से स्वामीजी ने कहा की आप इतनी बाते कहते है, हमलोग इसके अधिकारी नहीं है । सेठजी बोले मेरी बात आकाश में रहेगी । जब कोई अधिकारी मिलेगा उसे प्राप्त हो जाएगी ।.. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!