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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, एकादशी, शनिवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-२९-
भाईजी ने सेठजी के प्रति महापुरुष
वन्दन शीर्षक से एक पद और तैयार किया जो बड़ा ही भावपूर्ण है-
सर्व-शिरोमणि विश्व-सभा के,
आत्मोपम विश्वम्भरके ।
विजयी नायक जग-नायक के, सच्चे
सुहृद चराचर के ।।
सुखद सुधा-निधि साधु कुमुद के,
भास्कर भक्त-कमल-वनके ।
आश्रय दीनो के, प्रकाश पथिकों के,
अवलम्बन जन के ।।
लोभी जग-हित के, त्यागी सब जगत के,
भोगी भूमा के ।
मोहि निर्मोही के, प्यारे जीवन
बोधमयी माँ के ।।
तत्पर परम हरण पर-दुःख के,
तत्परता-विहीन तनके ।
चतुर खिलाडी जग-नाटक के, चिन्तामणि
साधक-जन के ।।
सफल मार्ग-दर्शक पथ-भ्रष्टों के,
आधार अभागों के ।
विमल विधायक प्रेम-भक्ति के, उच्च
भाव के, त्यागो के ।।
परम प्रचारक प्रभु-वाणी के, ज्ञाता
गहरे भावों के ।
वक्ता, व्याख्याता, विसुद्ध,
उच्छेदक सर्व कुभावों के ।।
पथदर्शक निष्काम-कर्म के, चालक अचल
सांख्यपथ के ।
पालक सत्य अहिंसा व्रत के, घालक
नित अपूत पथ के ।।
नासक त्रिविध ताप के, पोशाक तप के,
तारक भक्तों के ।
हारक पापों के, संजीवन-भेषज
विषयाशक्तों के ।।
पावनकर्ता पतितों के, पृथ्वी के,
प्रेत, पितृ-गण के ।
भूषण भूमंडल के, दूषण राग-द्वेष रणागण
के ।।
रक्षक अतिदृढ सत्य-धर्म के, भक्षक
भव-जंजालों के ।
तक्षक भोग-रोग धन-मद के, व्यापारी
सत-लालों के ।।
दक्ष दुभाषी जन, जन-धन के, मुखिया
राम-दलालों के ।
छिपे हुए अज्ञात लोक-निधि, मालिक
असली मालों के ।।
चूडामणि दैवी गुण-गण के, परमादर्श
महानों के ।
महिमा-वर्णन में असक्त तव,
विद्या-बल विद्वानों के ।।
भाईजी को सेठजी ने जैसिडीह में
विष्णुभगवान् के दर्शन करवाये थे । इस पद में उसकी और संकेत मिलता है ।
परम गुरु राममिलावनहार ।
अति उदार मंजुल मंगलमय अभिमत
फलदातार ।।
टूटी फूटी नाव पड़ी मम भीषण भाव नद
धार ।
जयति जयति जयदेव दयानिधि बेग
उतारों पार ।।…..
शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!