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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, चतुर्दशी, मंगलवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३२-
सेठजी का शरीर शान्त होने के बाद
स्वामीजी महाराज ने ट्रस्टीयों से कहा की अब यह संस्था वैसी नही चलेगी; क्योकि आप
लोगों की दृष्टी में पैसे का महत्व जायदा है । किसी ट्रस्टी ने कहा की महाराजजी हम
रुपया पैसा उठाकर तो ले नही जाते । महाराजजी ने कहा की इसकी तो मेरे कल्पना भी
नहीं है । पूज्य सेठजी के सामने पैसा आता था सफल होने के लिए और आपलोग पैसों से
सफलता मानते है ।
आषाढ़ कृष्ण एकादशी, सम्वत २०५७
(दिनांक २८-०६-२००) को स्वामी रामसुखदास जी महाराज के सानिध्य में षोड्स नाम का
कीर्तन हो रहा था । पुरुषोतम दास जी अजीतसरिया ने देखा की शंकर भगवान् डमरू लेकर
नाचते हुए आये एवं वहां बैठ गए । इसी बीच सेठजी आये । धोती, बगलबंदी एवं पगड़ी धारण
कर रखे थे तथा जूता पहन रखे थे । जूता खोलकर बैठने के लिए कुर्सी मंगायी फिर
स्वामी जी के पास चबूतरे पर बैठ गए । कीर्तन के बीच में स्वामी जी से काफी बाते की
। फिर छीमछीमिया मँगाकर सीताराम सीताराम एवं नारायण नारायण का कीर्तन कराया । फिर
उड़ जायेगा रे हँस अकेला-यह भजन गाने लगे । अन्य बातों को बीच में कहा हमने शरीर
पांच वर्ष पहले छोड़ दिया था वही उम्र आपकी बढ़ गयी है । स्वामी जी का शरीर इस घटना
के ठीक पांच वर्ष बाद आषाढ़ कृष्ण एकादशी, सम्वत २०६२ (दिनांक ३-७-२००५) की रात्रि
में लगभग ३.४० पर शान्त हुआ । ….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!