※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 27 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३२-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ कृष्ण, चतुर्दशी, मंगलवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-विशिष्ट सहयोगी-३२-

 

सेठजी का शरीर शान्त होने के बाद स्वामीजी महाराज ने ट्रस्टीयों से कहा की अब यह संस्था वैसी नही चलेगी; क्योकि आप लोगों की दृष्टी में पैसे का महत्व जायदा है । किसी ट्रस्टी ने कहा की महाराजजी हम रुपया पैसा उठाकर तो ले नही जाते । महाराजजी ने कहा की इसकी तो मेरे कल्पना भी नहीं है । पूज्य सेठजी के सामने पैसा आता था सफल होने के लिए और आपलोग पैसों से सफलता मानते है ।

आषाढ़ कृष्ण एकादशी, सम्वत २०५७ (दिनांक २८-०६-२००) को स्वामी रामसुखदास जी महाराज के सानिध्य में षोड्स नाम का कीर्तन हो रहा था । पुरुषोतम दास जी अजीतसरिया ने देखा की शंकर भगवान् डमरू लेकर नाचते हुए आये एवं वहां बैठ गए । इसी बीच सेठजी आये । धोती, बगलबंदी एवं पगड़ी धारण कर रखे थे तथा जूता पहन रखे थे । जूता खोलकर बैठने के लिए कुर्सी मंगायी फिर स्वामी जी के पास चबूतरे पर बैठ गए । कीर्तन के बीच में स्वामी जी से काफी बाते की । फिर छीमछीमिया मँगाकर सीताराम सीताराम एवं नारायण नारायण का कीर्तन कराया । फिर उड़ जायेगा रे हँस अकेला-यह भजन गाने लगे । अन्य बातों को बीच में कहा हमने शरीर पांच वर्ष पहले छोड़ दिया था वही उम्र आपकी बढ़ गयी है । स्वामी जी का शरीर इस घटना के ठीक पांच वर्ष बाद आषाढ़ कृष्ण एकादशी, सम्वत २०६२ (दिनांक ३-७-२००५) की रात्रि में लगभग ३.४० पर शान्त हुआ । .. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!