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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ कृष्ण, अमावस्या, बुधवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३३-
सेठजी का पन्चभौतिक शरीर धीरे-धीरे
कमजोर पड़ता जा रहा था । उन दिन में भी सेठजी पूर्व की तरह ही कार्य करते थे । एक
समय वे पत्रोत्तर लिखवा रहे थे । एक सत्संगी भाई ने कहा की अब आपको पत्रोत्तर नहीं
लिखवाने चाहिये । सेठजी ने कहा की यदि मुझे काफी इमार करना हो तो ये सब कार्य
मुझसे बंद करवा दो ।
एक कर्मनिष्ठ, परमभागवत जयदयाल जी
गोयन्दका की नेत्र ज्योति तो कई वर्ष पूर्व ही मोतियाबिन्द के ऑपरेशन के बाद नही
के बराबर रह गयी थी । पिताशय में भी पथरी हो गयी थी, जिससे पांच-छ: दिन के अंतराल
ज्वर आने लगा था और पेट में भी दर्द रहता था । शरीर निरन्तर क्षीण होता जा रहा था ।
उन दिनों सेठ जी बाँकुड़ा में थे । सभी लोगों को लगा के अब सेठ जी का शरीर जायदा
दिन नही रहेगा । अत: ३१ मार्च १९६५ को सेठजी को गीताभवन स्वर्गाश्रम ले आया गया ।
शरीर की स्थिति उत्तरोतर गिरने लगी
। पर देहवासन के पांच दिन पहले तक वे पत्र सुनते और उनके उत्तर लिखवाते रहे ।
बोलने की शक्ति कम हो गयी थी, तथापि वे धीरे-धीरे बोलते और उपदेश की बात कहते थे ।
प्रतिदिन-यहांतक की देहवसान के दिनों तक उन्होंने संध्या की और सूर्यअर्घ्य दिया ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!