※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 29 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३४-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, प्रतिपदा, गुरूवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३४-
 

गत ब्लॉग से आगे…....गीताभवन में आने वालों की श्रद्धालु-भक्तों की भीड़ बढने लगी । सेठजी की रुग्णता का समाचार एक नगर से दो नगर, एक घर से दो घर और एक मुहँ से दो मुहँ फैलने लगा ।
 
सेठजी ने न जाने कितनों को अध्यात्मिक प्रेरणा दी है, न जाने कितनों को साधन में प्रवृत किया है, न जाने कितने की उलझनों को सुलझाया है, न जाने कितनो को आर्थिक सहायता दी है और न जाने कितने दुखियों को सच्चा वात्सल्य दिया है ? सेठजी का व्यक्तित्व अनोंखा है । साधारण गृहस्थ होकर भी परम ज्ञान निष्ठ थे साधारण व्यापारी होकर भी गहरे दार्शनिक थे । भावुक होकर भी बड़े विवेकशील थे ।
 
साधू या सन्यासी, सत्संगी या साधक, अभावग्रस्थ या कष्टपीडित, परिचित या अपरिचित, सबके हितचिन्तन में और हितार्थ सेवा में उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया । श्रद्धालु भक्तों की, आत्मीय स्वजनों की, सहयोगी कार्यकर्ताओं की, प्रिय सत्संगियों की, इनके अतिरिक्त जो जैसे भी सेठजी से जुडा था, उनकी भीड़ बढ़ने लगी ।
 
 सेठजी के दर्शनार्थ सभी उमड़ने लगे । सेठजी को जब आने वालों की जानकारी दी गयी, बदले में राम राम कहकर उन्होंने परिवार के व्यक्तियों को यह भी आदेश दिया की उनका पूर्ण सत्कार किया जाये । .. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!