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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, प्रतिपदा, गुरूवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३४-
गत ब्लॉग से आगे…....गीताभवन में आने वालों की
श्रद्धालु-भक्तों की भीड़ बढने लगी । सेठजी की रुग्णता का समाचार एक नगर से दो नगर,
एक घर से दो घर और एक मुहँ से दो मुहँ फैलने लगा ।
सेठजी ने न जाने कितनों को
अध्यात्मिक प्रेरणा दी है, न जाने कितनों को साधन में प्रवृत किया है, न जाने
कितने की उलझनों को सुलझाया है, न जाने कितनो को आर्थिक सहायता दी है और न जाने
कितने दुखियों को सच्चा वात्सल्य दिया है ? सेठजी का व्यक्तित्व अनोंखा है । साधारण
गृहस्थ होकर भी परम ज्ञान निष्ठ थे साधारण व्यापारी होकर भी गहरे दार्शनिक थे ।
भावुक होकर भी बड़े विवेकशील थे ।
साधू या सन्यासी, सत्संगी या साधक, अभावग्रस्थ या
कष्टपीडित, परिचित या अपरिचित, सबके हितचिन्तन में और हितार्थ सेवा में उन्होंने
अपना सारा जीवन लगा दिया । श्रद्धालु भक्तों की, आत्मीय स्वजनों की, सहयोगी
कार्यकर्ताओं की, प्रिय सत्संगियों की, इनके अतिरिक्त जो जैसे भी सेठजी से जुडा
था, उनकी भीड़ बढ़ने लगी ।
सेठजी के दर्शनार्थ सभी उमड़ने लगे । सेठजी को जब आने
वालों की जानकारी दी गयी, बदले में राम राम कहकर उन्होंने परिवार के व्यक्तियों को
यह भी आदेश दिया की उनका पूर्ण सत्कार किया जाये । ….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!