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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, द्वितीया, शुक्रवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३५-
गत ब्लॉग से आगे…....हालत बिगड़ती गयी । १५ अप्रैल को
ज्वर जायदा हो गया । ताप प्राय १०२ रहने लगा । नाडी की गति ११५-१२० रहने लगी । एक
बार तो १४० भी हो गयी थी । श्वाश की गति भी बढ़ने लगी और २८ से ५० तक पहुच गयी ।
आहार बिलकुल छुट गया । केवल अनार का रस, मौसमी का रस या थोडा गंगाजल ले पाते ।
शुक्रवार १६ अप्रैल का दिन बड़े कष्ट या कठिनाई में बीता । आसपास खड़े सभी के मुख पर
उदासी थी । ह्रदय में व्यथा थी । साथ में मन में एक बड़ा भारी प्रश्न था-सेठजी के
बाद कौन धर्म के प्रचार की ध्वजा को सम्भालेगा ?
इस कष्ट की स्थिति में भी सेठजी
का नामजप निरन्तर चल रहा था । अधरों का हिलना तथा अँगुलियों की पोरों पर अंगूठों
का फिरना इसका प्रमाण था । चेतना भी निरन्तर बनी रही । विगत कई दिवसों से जो भी
आते थे, वे अपना प्रणाम सेठजी के चरणों में निवेदन करते थे । सेठजी बदले में सबको
संकेत से राम-राम कहते ।
जीवन के अंतिम क्षणों में भी व्यवहारिकता के निर्वाह का
एक विचित्र प्रसंग है-एक वरिष्ठ व्यक्ति का राम राम निवेदन किया । तुरंत सेठजी ने
आपने कांपते हाथों से दोनों हथेली जोड़ कर उनको प्रणाम किया । लोग देखकर दंग रह गए
की ऐसी अशक्तावस्था के क्षण में भी पद के अनुसार यथायोग्य व्यवहार हो रहा है । इतना
ही नहीं, अशक्तावस्था में भी उनकी मानसिक संध्या और सूर्य भगवान को जल से अर्घ्य
हमेशा चलता रहता ।
उनको गीतापाठ और विष्णुसहस्त्रनाम सुनाया जाता था । यदि कही बीच
में अशुद्धि होती तो अंगुली से संकेत करते थे । ….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!