※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 30 मई 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३५-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, द्वितीया, शुक्रवार,  वि० स० २०७१ 

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३५-

 

गत ब्लॉग से आगे…....हालत बिगड़ती गयी । १५ अप्रैल को ज्वर जायदा हो गया । ताप प्राय १०२ रहने लगा । नाडी की गति ११५-१२० रहने लगी । एक बार तो १४० भी हो गयी थी । श्वाश की गति भी बढ़ने लगी और २८ से ५० तक पहुच गयी । आहार बिलकुल छुट गया । केवल अनार का रस, मौसमी का रस या थोडा गंगाजल ले पाते । शुक्रवार १६ अप्रैल का दिन बड़े कष्ट या कठिनाई में बीता । आसपास खड़े सभी के मुख पर उदासी थी । ह्रदय में व्यथा थी । साथ में मन में एक बड़ा भारी प्रश्न था-सेठजी के बाद कौन धर्म के प्रचार की ध्वजा को सम्भालेगा ?
 
इस कष्ट की स्थिति में भी सेठजी का नामजप निरन्तर चल रहा था । अधरों का हिलना तथा अँगुलियों की पोरों पर अंगूठों का फिरना इसका प्रमाण था । चेतना भी निरन्तर बनी रही । विगत कई दिवसों से जो भी आते थे, वे अपना प्रणाम सेठजी के चरणों में निवेदन करते थे । सेठजी बदले में सबको संकेत से राम-राम कहते ।
 
जीवन के अंतिम क्षणों में भी व्यवहारिकता के निर्वाह का एक विचित्र प्रसंग है-एक वरिष्ठ व्यक्ति का राम राम निवेदन किया । तुरंत सेठजी ने आपने कांपते हाथों से दोनों हथेली जोड़ कर उनको प्रणाम किया । लोग देखकर दंग रह गए की ऐसी अशक्तावस्था के क्षण में भी पद के अनुसार यथायोग्य व्यवहार हो रहा है । इतना ही नहीं, अशक्तावस्था में भी उनकी मानसिक संध्या और सूर्य भगवान को जल से अर्घ्य हमेशा चलता रहता ।
 
उनको गीतापाठ और विष्णुसहस्त्रनाम सुनाया जाता था । यदि कही बीच में अशुद्धि होती तो अंगुली से संकेत करते थे । .. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!