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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, तृतीया, शनिवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३६-
गत ब्लॉग से आगे…....रात्रि को उन्होंने भाई जी
श्रीहनुमानप्रसाद जी से ध्यान कराने को कहा । पहले तो वे नही समझे, परन्तु पुन:
संकेत प्राप्त करने पर उन्होंने सेठजी के प्रिय ‘आनन्द’ तत्व का विशेषणोसहित
उच्चारण किया । उन्होंने उसे बार-बार सुना । बड़े प्रसन्न हुए ।
तदन्तर पुन: वैसा ही संकेत मिला, तब भाई जी ने उन्हें
आनन्द-तत्व के शब्द कई बार सुनाये, फिर अद्वैत ब्रह्म की बोधक कुछ श्रुतियाँ
सुनायी और उन्हें उनके लिए नित्य सत्य ब्रह्म-स्वरुप का वर्णन सुनाया । जो कुछ सुनाया
उसमे से कुछ यहाँ दिया जा रहा है ।
आनन्द-तत्व के उद्गार- आनन्द,
आनन्द, सत् आनन्द, चित्त आनन्द, पूर्ण आनन्द, अचल आनन्द, ध्रुव आनन्द, शान्त
आनन्द, घन आनन्द, बोधस्वरुप आनन्द, ज्ञानस्वरूप आनन्द, अमृतस्वरुप आनन्द, स्वरूपानन्द,
आत्मानन्द, ब्रह्मानन्द, विज्ञानं आनन्द, कवैल्यानन्द, म्ह्दानन्द, अजरानन्द,
अक्षरानन्द, नित्य आनन्द, अव्यय आनन्द, अनन्त आनन्द, अपार आनन्द, परत्परानंद, असीम
आनन्द, परमानन्द, अनिवर्चनीय आनन्द, अचिन्त्य आनन्द, अपरिमेय आनन्द, निरतिशय
आनन्द, आनंदमय आनन्द, आनन्द में आनन्द, आनन्द से ही आनन्द, आनन्द को ही आनन्द,
आनन्द-ही-आनन्द, आनन्द-ही-आनन्द, आनन्द, आनन्द ।
तदन्तर कहा-
‘आपमें न जन्म है, न मृत्यु है, न
जरा है, न रोग है, न वृद्धि है, न हास् है, न विकास है, न विनाश है । न मन है, न
चित है, न प्राण है, न अप्राण है, न इन्द्रिय है, न इन्द्रियों के विषय है ।
आप सर्वप्रकाशरूप है, न चिन्मात्र
ज्योति है, तीनो कालों से मुक्त है, कामादि विकारों से रहित है, आप दैहिक दोषों से
मुक्त है, सदा निर्दोष है, आप निर्गुण है । ….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!