※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 1 जून 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३७-



।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, चतुर्थी, रविवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३७-

 

गत ब्लॉग से आगे…....आप नित्यमुक्त है, अतएव मुक्ति से रहित है, आप सदा समरूप है, शान्त है, पुरुषोत्तम है, यही आपका स्वरुप है । केवल एक ब्रह्म ही ब्रह्म है और वही आप है ।

आप भूमा है, अल्प नही है । जो भूमा है, वही सुख है, अल्प में सुख नही है । जहाँ अन्य को नही देखता, अन्य को नही सुनता, वह भूमा है और जहाँ अन्य को देखता है, अन्य को सुनता है, अन्य को जानता है, वह अल्प है । जो भूमा है, वह अमृत है और जो अल्प है वह मरणशील है । वह भूमा अपनी महिमा में ही स्थित है । भूमा में सिवा अन्य कुछ है ही नहीं । वह भूमा आपका स्वरुप है ।

आत्मा पाप रहित है, जरा-मरण रहित है, शोक-विषाद रहित है, क्षुधा पिपासा रहित है, सत्यकाम और सत्यसंकल्प है । वह आत्म आप है । आप नित्य विशुद्ध चिन्मय परमात्मतत्व है ।

आप नित्य मुक्त है, आप जीवन मुक्त है; ब्रह्म आपका स्वरुप है और आप नित्य ब्रह्म में ही अभिन्न प्रतिष्टित है । एक ब्रह्म ही ब्रह्म है । ब्रह्म ही है ।

‘अयमात्मा ब्रह्म’, ‘सर्व खल्विदं ब्रह्म’, ‘सत्यं ब्रह्मेति सत्यं हेयव ब्रह्म’, ‘तत्वमसि’, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ                              

जिस समय भाई जी उन्हें यह सब सुना रहे थे, उस समय सेठजी के चेहरे पर आनन्द की लहरें उठ रही थी । वे अत्यन्त प्रसन्न थे । सोये-सोये ही बारम्बार भाईजी को हाथों से खीचकर उनके गले में दोनों हाथ डाल कर उन्हें हृदय से लगाना चाहते थे । बार-बार सुनाने के संकेत करते थे और इससे उन्हें बार बार सुनाया भी जाता था ।
 
सब सुनने के बाद वे आनन्द-गद्गद वाणी में धीरे स्वर में बोले-‘ठीक है ठाक है । सब ब्रहम ही है, ब्रहम ही है, और कुछ नहीं है, आनन्द आनन्द ।’ .. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!