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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, चतुर्थी, रविवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३७-
गत ब्लॉग से आगे…....आप नित्यमुक्त है, अतएव मुक्ति से
रहित है, आप सदा समरूप है, शान्त है, पुरुषोत्तम है, यही आपका स्वरुप है । केवल एक
ब्रह्म ही ब्रह्म है और वही आप है ।
आप भूमा है, अल्प नही है । जो भूमा
है, वही सुख है, अल्प में सुख नही है । जहाँ अन्य को नही देखता, अन्य को नही
सुनता, वह भूमा है और जहाँ अन्य को देखता है, अन्य को सुनता है, अन्य को जानता है,
वह अल्प है । जो भूमा है, वह अमृत है और जो अल्प है वह मरणशील है । वह भूमा अपनी
महिमा में ही स्थित है । भूमा में सिवा अन्य कुछ है ही नहीं । वह भूमा आपका स्वरुप
है ।
आत्मा पाप रहित है, जरा-मरण रहित
है, शोक-विषाद रहित है, क्षुधा पिपासा रहित है, सत्यकाम और सत्यसंकल्प है । वह
आत्म आप है । आप नित्य विशुद्ध चिन्मय परमात्मतत्व है ।
आप नित्य मुक्त है, आप जीवन मुक्त
है; ब्रह्म आपका स्वरुप है और आप नित्य ब्रह्म में ही अभिन्न प्रतिष्टित है । एक ब्रह्म
ही ब्रह्म है ।
ब्रह्म ही है ।
‘अयमात्मा ब्रह्म’, ‘सर्व खल्विदं
ब्रह्म’, ‘सत्यं ब्रह्मेति सत्यं हेयव ब्रह्म’, ‘तत्वमसि’, ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
जिस समय भाई जी उन्हें यह सब सुना
रहे थे, उस समय सेठजी के चेहरे पर आनन्द की लहरें उठ रही थी । वे अत्यन्त प्रसन्न
थे । सोये-सोये ही बारम्बार भाईजी को हाथों से खीचकर उनके गले में दोनों हाथ डाल
कर उन्हें हृदय से लगाना चाहते थे । बार-बार सुनाने के संकेत करते थे और इससे
उन्हें बार बार सुनाया भी जाता था ।
सब सुनने के बाद वे आनन्द-गद्गद वाणी में धीरे
स्वर में बोले-‘ठीक है ठाक है । सब ब्रहम ही है, ब्रहम ही है, और कुछ नहीं है,
आनन्द आनन्द ।’ ….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!