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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, पञ्चमी, सोमवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३८-
गत ब्लॉग से आगे…....शुक्रवार के दिन के समान ही रात भी
बड़ी वेदना और कष्ट में व्यतीत हुआ । १७ अप्रैल १९६५ के शनिवार की सुबह भी आई ।
किसे ज्ञात था की यही अन्तिम सुबह है ?
माना, वे ज्ञाननिष्ठ थे, उनका मन भगवान्
में और भगवान् के नाम में लीन था, उनकी आत्मा को शारीरिक कष्ट स्पर्श नहीं कर पाता
था, पर उनके कष्टों को देखकर स्वजनों का मन तो रो ही रहा था । इस कष्ट की स्थति
में भी सेठजी ने श्रीभाईजी से उपनिषद के मन्त्र सुने और मन्त्रों की व्याख्या सुनी
। हर एक स्वजन उनके दर्शन करना चाहता था, धर्मज्योति की इस शिखा को निरन्तर अपनी
आखों के सामने रखना चाहता था ।
कमरा छोटा था, अत: दिन के ग्यारह बजे सेठजी को कमरे
के बाहर बरामदे में लाया गया । सेठजी से कहा गया की दर्शनार्थियों की सुविधा के
लिए आपको कमरे के बाहर लाया गया है, आपके चारों और दर्शनार्थी खड़े है । सेठजी ने
सोये-सोये अपने काँपते हाथों से हाथ जोड़कर सबका अभिवादन किया । चारों और
दर्शनार्थी थे, अधिकाँश बैठे हुए और कुछ खड़े हुए । उनके मुख से नि:सृत भगवान्नाम
कीर्तन की मधुर ध्वनि से वातावरण मधुर और मुखरित था ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!