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श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
ज्येष्ठ शुक्ल, पञ्चमी, मंगलवार, वि० स० २०७१
गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३९-
गत ब्लॉग से आगे…....इस वातावरण में एक गम्भीरता थी, एक
सात्विकता सन्त के ह्रदय की, व्यथा आत्मीय के वियोग की, समस्या कार्यसंचालन की, भय
पथ-प्रदर्शक के हटने का और आतंक जीवन के कटु सत्य मृत्यु का । सेठजी के समीपस्थ
लोगों के अधरों पर भगवान्नाम की ध्वनि है, चेहरे पर लाचार उदासी है, आँखों में
छिपा हुआ अश्रुजल है और ह्रदय में चुभने वाली टीस है । सभी मूक भाव से देख रहे है ।
सेठजी ने खाट पर लेटे-लेटे ॐ का घोष प्रारम्भ कर दिया । सम्पूर्ण वातावरण में एक
विचित्र शान्ति व्याप्त हो गयी । भाई जी, राधा बाबा, स्वामी रामसुखदास जी महाराज,
स्वामी भजनानन्द जी, तथा शरणानन्दजी भी वही थे । सभी के सामने ३ बजे उनको खाट से
उतार कर नीचे बालुका की शय्या पर सुला दिया गया ।
मुख में गंगाजल, तुलसी दी गयी ।
सभी लोग मौन होकर यह दृश्य देख रहे थे । रोते हुए मौन बाबा ने देखा-अद्वैत
सिद्धांत का सूर्य अस्ताचल को आज जा रहा है । मौन सन्यासी ने देखा-हमारे साथ ज्ञान
चर्चा करने वाला आज जा रहा है । मौन साधकों ने देखा-हमारा पथ प्रदर्शक आज जा रहा
है । मौन सत्संगियों ने देखा-हमसे सत्चर्चा करने वाला आज जा रहा है ।
मौन विधवा
बहनों ने देखा-हमारा सच्चा अभिभावक आज जा रहा है । मौन ब्राह्मणों ने देखा-हमारा
रक्षक आज जा रहा है । और तो और, गीताभवन की दीवारों ने देखा-मेरा संस्थापक आज जा
रहा है । मौन वाटिका ने देखा-मेरा माली आज जा रहा है, और सचमच वह चला गया । क्या
विश्वाश कर लिया जाय ? मन नहीं मानता । नेत्रों के मार्ग से हंस अकेला सांय ४ बजे
अपने देश चला गया ।….. शेष अगले ब्लॉग में
गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक,
प्रकाशक श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!