※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 3 जून 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३९-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, पञ्चमी, मंगलवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-३९-

 

गत ब्लॉग से आगे…....इस वातावरण में एक गम्भीरता थी, एक सात्विकता सन्त के ह्रदय की, व्यथा आत्मीय के वियोग की, समस्या कार्यसंचालन की, भय पथ-प्रदर्शक के हटने का और आतंक जीवन के कटु सत्य मृत्यु का । सेठजी के समीपस्थ लोगों के अधरों पर भगवान्नाम की ध्वनि है, चेहरे पर लाचार उदासी है, आँखों में छिपा हुआ अश्रुजल है और ह्रदय में चुभने वाली टीस है । सभी मूक भाव से देख रहे है । सेठजी ने खाट पर लेटे-लेटे ॐ का घोष प्रारम्भ कर दिया । सम्पूर्ण वातावरण में एक विचित्र शान्ति व्याप्त हो गयी । भाई जी, राधा बाबा, स्वामी रामसुखदास जी महाराज, स्वामी भजनानन्द जी, तथा शरणानन्दजी भी वही थे । सभी के सामने ३ बजे उनको खाट से उतार कर नीचे बालुका की शय्या पर सुला दिया गया ।
 
मुख में गंगाजल, तुलसी दी गयी । सभी लोग मौन होकर यह दृश्य देख रहे थे । रोते हुए मौन बाबा ने देखा-अद्वैत सिद्धांत का सूर्य अस्ताचल को आज जा रहा है । मौन सन्यासी ने देखा-हमारे साथ ज्ञान चर्चा करने वाला आज जा रहा है । मौन साधकों ने देखा-हमारा पथ प्रदर्शक आज जा रहा है । मौन सत्संगियों ने देखा-हमसे सत्चर्चा करने वाला आज जा रहा है ।
 
मौन विधवा बहनों ने देखा-हमारा सच्चा अभिभावक आज जा रहा है । मौन ब्राह्मणों ने देखा-हमारा रक्षक आज जा रहा है । और तो और, गीताभवन की दीवारों ने देखा-मेरा संस्थापक आज जा रहा है । मौन वाटिका ने देखा-मेरा माली आज जा रहा है, और सचमच वह चला गया । क्या विश्वाश कर लिया जाय ? मन नहीं मानता । नेत्रों के मार्ग से हंस अकेला सांय ४ बजे अपने देश चला गया ।.. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!