※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 4 जून 2014

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-४०-


।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, षष्ठी, बुधवार,  वि० स० २०७१

गीताप्रेस के संस्थापक-जीवन के अन्तिम क्षण-४०-

 

गत ब्लॉग से आगे…....सेठजी के अंतिम समय पर कुछ लोगों को दो-तीन चमत्कार की अनुभूति हुई । उनकी मृत्यु के पूर्व कुछ लोगों को ऐसा अनुभव हुआ की उनके नेत्र से एक ऐसा प्रकाश विकीर्ण हुआ है जैसे कमरे का बटन दबाते ही अचानक फ़्लैश लाइट का प्रकाश होता है । फ़्लैश लाइट के प्रकाश से भी कई गुना अधिक । उनकी मृत्यु के कुछ पूर्व कुछ लोगों को ऐसा अनुभव हुआ की उनके शरीर के चारों और एक ऐसा सौरभ विकीर्ण हो गया है जो अनोखा और अद्वितीय है । अनुभव करने वाले सज्जनों के लिए ऐसा सौरभ अनुभूत था । उनकी मृत्यु से पूर्व कुछ लोगों को ऐसा अनुभव हुआ की उनके मुख-मंडल पर एक चिर-परिचित मुस्कान विकीर्ण हो गयी मानों प्रवचन के समय की वाही हास्यपूर्ण मुद्रा हो । अपनी-अपनी भावना ने अनुसार भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को चमत्कारिक अनुभूतियाँ हुई, पर वह ‘हँस’ चला गया और पार्थिव शरीर रह गया । अब भले ही पार्थिव-शरीर का  फोटो लो, पार्थिव शरीर को फूलों की माला पहनाओं और पार्थिव शरीर को बार बार फूल चढाओं, उस पार्थिव शरीर के आवरण को, उस ‘हँस’ को धर्म की ध्वजा फहराने का जो महान कार्य करना था, वह करके चला गया ।

यह निश्चित हो गया की सेठजी की अंत्येष्टि-क्रिया अभी संपन्न हो । शव को गंगाजल से स्नान करवाया गया । दूर्वा के मैदान में अर्थी को रखा गया । लोगों ने परिक्रमा दी, पुष्प चढ़ाये, नारियल चढ़ाये और प्रणाम किया । शाम को साढ़े छ: बजे शव-यात्रा आरम्भ हुई । गीता भवन के मुख्य द्वार से आज उसी का निर्माता सदा के लिए विदा हो रहा है । पहले ‘हँस’ विदा हुआ, अब पार्थिव शरीर भी विदा हो रहा है । राम-नाम सत्य है की ध्वनि के बीच वह पार्थिव-शरीर विदा हुआ । पहले भवन के द्वार से, फिर द्वारकी वाटिका से और वाटिका की दीवालों ने-सभी ने मौन और मूक मन से विदाई दी ।.. शेष अगले ब्लॉग में       

गीताप्रेस के संस्थापक, गीता के परम प्रचारक, प्रकाशक  श्रीविश्वशान्ति आश्रम, इलाहाबाद

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!