।।
श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
आषाढ़ कृष्ण , द्वादशी, मंगलवार, वि० स० २०७१
कर्मयोग -१-
जगत में छोटे-बड़े सभी चराचर जीव प्रकृति के और अपने गुण,
कर्म, स्वभाव के वश हुए प्रारब्ध के अनुसार सुख-दु:खादि भोगों को भोगते है ।
कर्मों में आसक्ति,
कर्तत्व-अभिमान, फल की इच्छा और विषमता आदि दोष विष से भी अधिक विष होकर मनुष्य को
जन्म-मृत्यु के चक्कर में डालने वाले है ।
लोग भ्रमवश निष्काम कर्म को असम्भव
मानकर कह देते है की स्वार्थवश कर्म कभी हो ही नही सकते । वे इस बात को सोचते है
की जब चेष्टा और अभ्यास करने से स्वार्थ या कामना कम होती है, तब किसी समय उसका
नाश भी अवश्य हो सकता है ।
इश्वरार्थ और इश्वरार्पण कर्म करने
से मनुष्य पुण्य और पापों से छुटकर सत्स्वरूप परमात्मा को प्राप्त हो जाता है । ....शेष अगले ब्लॉग में
-सेठ जयदयाल गोयन्दका, कल्याण वर्ष ८८,
संख्या ६, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!