※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 24 जून 2014

कर्मयोग -१-



।। श्रीहरिः ।।

आज की शुभतिथि-पंचांग

आषाढ़ कृष्ण , द्वादशी, मंगलवार, वि० स० २०७१

कर्मयोग  -१-

 

जगत में छोटे-बड़े सभी चराचर जीव प्रकृति के और अपने गुण, कर्म, स्वभाव के वश हुए प्रारब्ध के अनुसार सुख-दु:खादि भोगों को भोगते है ।

     कर्मों में आसक्ति, कर्तत्व-अभिमान, फल की इच्छा और विषमता आदि दोष विष से भी अधिक विष होकर मनुष्य को जन्म-मृत्यु के चक्कर में डालने वाले है ।

लोग भ्रमवश निष्काम कर्म को असम्भव मानकर कह देते है की स्वार्थवश कर्म कभी हो ही नही सकते । वे इस बात को सोचते है की जब चेष्टा और अभ्यास करने से स्वार्थ या कामना कम होती है, तब किसी समय उसका नाश भी अवश्य हो सकता है ।

इश्वरार्थ और इश्वरार्पण कर्म करने से मनुष्य पुण्य और पापों से छुटकर सत्स्वरूप परमात्मा को प्राप्त हो जाता है । ....शेष अगले ब्लॉग में
            

 -सेठ जयदयाल गोयन्दका, कल्याण वर्ष ८८, संख्या ६, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!