※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

गौ सेवा की प्रेरणा -५-

।। श्रीहरिः ।।
आज की शुभतिथि-पंचांग
25 April 2015, Sturday


मॉस के विषय में होटलों में खानसा में सभी धर्म-जाति के होते है, उनमे कोई जाति का भेद नही रहता वहां कोई शुद्धि नही रहती, कोई अंडे, माँस मदिरा रखते है इनका नाम लेने से मनुष्य को पाप लगता है मैं जो उनके नाम का उच्चारण करता हूँ, वह उनके निषेध के लिए करता हूँ इसलिए शायद पाप नही लगे इस विषय में तो सौगंध ही कर लेनी चाहिए की किसी भी होटल में नही जाना है दूसरी उत्तम बात यह है की चमड़े का सामान काम में लाना ही नही है; क्योकि मालूम नही होता की यह चमडा अपने से मरी गाय का है या मारी गयी गाय का, मरी हुई गाय का चमडा उतारा गया है या चमडा उतार कर फिर वह मारी गयी है चमड़ा चाहे पहले उतारे या बाद में, दोनों में पाप है चमडा उतार कर मारे तो और ज्यादा पाप है इसलिए चमडा काम में नही लाना चाहिए यदि चमडा काम में लाते है और उसके विषय में कहाँ जाता है की यह ‘खादी प्रतिष्ठान का चमडा है, मरी हुई गऊ का है, अपनी मौत से मरी हुई गऊ का चमड़ा है, मारी हुई गऊ का नहीं, तो हमारा इतना विरोध नही है उसको काम में लाया जा सकता है, जब आपको पूरी जानकारी हो जाय की वह चमडा अपने से मरी हुई ही गाय का है, तब भी यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए की जो गायें चमड़े के लिए, माँस के लिए मारी जाती है, उन गायों के चमड़े के जूता वगैराह काम में नही लाऊंगा   गायों के चमड़ों के जूतों का और होटलों में जाने का त्याग कर देना चाहिए किसी भी होटल में जाकर खाना या होटल की चीज मँगाकर या रेल में होटल की चीज मँगाकर खाना आपको जचे तो एकदम सदा के लिए त्याग देनी चाहिए; क्योकि कितने वर्ष जीओगे, आखिर में तो मरोगे ही ऐसे कलंकित होकर संसार से क्यों जाय   ऐसा करना अपने कुल में, जाति में, देश में कलंक लगाना है आप यदि ठीक समझे तो ‘परमात्मा की जय’ बोलकर इसकी स्वीकृति दे और प्रतिज्ञा स्वीकार करे’ ......शेष अगले ब्लॉग में   
         
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, कल्याण वर्ष ८९, संख्या ०३ से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!